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पॉलीथीन का विकल्प डी-कम्पोजिबल बैग बनाती हैं, महिलायें।

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ग्वालियर(म.प्र.), दूसरों के घरों में झाड़ू-पोंछा और बर्तन मांजने वाली महिलायें दीनदयाल राष्ट्रीय आजीविका मिशन से मिली मदद से अब पॉलीथिन बैग के विकल्प के रूप में विशेष डी-कम्पोजिबल थैले बनाने का काम कर आत्मनिर्भर हो गई हैं, साथ ही अपने शहर ग्वालियर को पॉलीथिन मुक्त बनाने में भी जुटी हैं। ग्वालियर शहर की हरिशंकरपुरम कॉलोनी में नगर निगम ने कम्युनिटी हॉल में इन महिलाओं को फिलहाल अपना कारोबार चलाने के लिये जगह दी है। चंद्रबदनी नाका एवं उससे सटी अन्य मलिन बस्तियों की निवासी 15 महिलाओं ने आस वेलफेयर फाउण्डेशन की मदद से अपना स्व-सहायता समूह गठित किया है। इस संस्था की प्रमुख श्रीमती अनुराधा घोड़के ने समूह की महिलाओं को समूह संचालन का प्रशिक्षण भी दिलवाया है। मध्यप्रदेश सरकार ने पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखकर पॉलीथिन बैग के इस्तेमाल को रोकने का फैसला किया है। महिलाओं का यह समूह सरकार की इस मंशा को पूरा करने में जुटा है। नगर निगम ग्वालियर ने राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत इस महिला समूह को तीन सिलाई मशीन दिलाई हैं। समूह द्वारा निर्मित विशेष कपड़े के थैले पूरी तरह डी-कम्पोजिबल हैं, जो इस्तेमाल के बाद आसानी से नष्ट किए जा सकते हैं। जाहिर है कि पॉलीथिन बैग की तरह ये पर्यावरण को हानि नहीं पहुँचाते। साथ ही प्रदूषण और गंदगी का कारण भी नहीं बनते। समूह की अध्यक्ष राधा झा और सचिव छुट्टन सहित सभी महिलायें प्रतिदिन साथ काम करती हैं। नियमित बैठक कर अपनी आर्थिक गतिविधि को और ऊँचाईयाँ देने पर विचार मंथन करती हैं। समूह की इन सदस्यों का जीवन स्तर अब तेजी से सुधर रहा है। “आस वेलफेयर फाउण्डेशन” की प्रमुख अनुराधा घोड़के बताती हैं कि समूह द्वारा निर्मित कपड़े के लगभग साढ़े तीन हजार थैले नगर निगम ने खरीद लिए हैं, शहर के कारोबारियों और दुकानदारों को भी यह थैले खरीदने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है, इस महिला स्व-सहायता समूह द्वारा निर्मित थैले ग्वालियर शहर को पॉलीथिन मुक्त बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

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