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नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति जारी।

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फोटो नेट साभार

नई-दिल्ली, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017 में 15 वर्षों के अंतराल के बाद नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति जारी की गई, 15 मार्च, 2017 को मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एन.एच.पी) 2017 को अपनी स्वीकृती दी है, एन.एच.पी 2017 में बदल रही सामाजिक, आर्थिक प्रौद्योगिकी तथा महामारी से संबंधित वर्तमान परिस्थिति और उभर रही चुनौतियों का समाधान किया गया है। नई नीति बनाने की प्रक्रिया में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की केन्द्रीय परिषद तथा मंत्री समूह की स्वीकृति से पहले विभिन्न हित-धारकों तथा क्षेत्रीय हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया, एन.एच.पी 2017 का प्रमुख संकल्प 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को जी.डी.पी के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाना है, स्वास्थ्य नीति में स्वास्थ्य और निरोग केन्द्रों के माध्यम से आश्वस्त व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का बड़ा पैकेज उपलब्ध कराना है। इस नीति का उद्देश्य सभी के लिए संभव उच्चस्तरीय स्वास्थ सेवा का लक्ष्य प्राप्त करना, रोकथाम और संवर्धनकारी स्वास्थ्य सेवा तथा वित्तीय बोझ रहित गुणवत्ता संपन्न स्वास्थ्य सेवाओं की सार्वभौमिक पहुंच उपलब्ध कराना है। पहुँच बढ़ाकर, गुणवत्ता में सुधार करके और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की लागत में कमी करके इसे हासिल किया जाएगा। एनएचपी 2017 में संसाधनों का बड़ा भाग (दो तिहाई या अधिक) प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को उपलब्ध कराने पर बल दिया गया है और इसका बल प्रति एक हजार की आबादी पर दो बिस्तरों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने पर है। इस आबादी का वितरण इस प्रकार किया गया है ताकि स्वर्ण घण्टे के अंदर पहुंच हो सके। स्वास्थ्य नीति 2017 में नई दृष्टि से निजी क्षेत्र से रणनीतिक खरीदारी पर ध्यान दिया गया है। राष्ट्रीय नीति में स्वास्थ्य लक्ष्यों को हासिल करने में निजी क्षेत्र की मजबूतियों का लाभ उठाने और निजी क्षेत्र के साथ मजबूत साझेदारी पर ध्यान दिया गया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के अंतर्गत आश्वासन आधारित दृष्टिकोण-नीति में रोकथाम और संवर्धनकारी स्वास्थ्य सेवा पर फोकस करते हुए आश्वासन आधारित दृष्टिकोण पर बल दिया गया है। इसके अलावा स्वास्थ कार्ड को स्वास्थ्य सुविधाओं से जोड़ना-नीति में देश में कहीं भी सेवाओं के परिभाषित पैकेज के लिए स्वास्थ कार्ड को प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं से जोड़ने की सिफारिश की गई है, रोगी केन्द्रीत दृष्टिकोण-नीति में रोगी देखभाल, सेवाओं के मूल्य, लापरवाही तथा अनुचित व्यवहारों से संबंधित विवादों/ शिकायतों के समाधान के लिए अधिकार सम्पन्न चिकित्सा अधिकरण स्थापित करने की सिफारिश की गई है तथा प्रयोगशालाओं और इमेजिंग सेन्टरों तथा उभर रही विशेषज्ञ सेवाओं के लिए मानक नियामक ढ़ांचा स्थापित करने की सिफारिश की गई है। पोषक तत्व की कमी- पोषक तत्व की कमी से उत्पन्न कुपोषण को घटाने पर बल तथा सभी क्षेत्रों में पोषक तत्व की पर्याप्तता में विविधता पर फोकस किया गया है। देखभाल गुणवत्ता- सार्वजनिक अस्पतालों तथा स्वास्थ सुविधाओं का समय-समय पर मूल्यांकन किया जाएगा और उन्हें गुणवत्ता स्तर का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा। मेक इन इंडिया पहल- नीति में दीर्घकालिक दृष्टि से भारतीय आबादी के लिए देश में बने उत्पाद उपलब्ध कराने के लिए स्थानीय मैन्यूफैक्चरिंग को संवेदी और सक्रिय बनाने की आवश्यकता पर बल दिया है। डिजीटल स्वास्थ्य प्रणाली-स्वास्थ नीति में चिकित्सा सेवा प्रणाली की दक्षता और परिणाम को सुधारने के लिए डीजिटल उपायों की व्यापक तैनाती पर बल दिया गया है। इसका उद्देश्य सभी हितधारकों की आवश्यकताओं को पूरा करने वाली तथा कार्य दक्षता, पादर्शिता और सुधार करने वाली एकीकृत स्वास्थ सूचना प्रणाली स्थापित करना है। महत्वपूर्ण अंतरों को पाटने और स्वास्थ्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में रणनीतिक खरीदारी करने के लिए निजी क्षेत्र से सहयोग अपेक्षित है। एन.एच.पी 2017 को सरकार द्वारा केन्द्रीय बजट 2017-18 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के लिए 47,352.51 करोड़ रूपये आबंटित करके उचित समर्थन दिया है, यह राशि पिछले वर्ष के आबंटन से 27.7 प्रतिशत अधिक है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक, 2017 को मंत्रिमंडल ने 15 दिसम्बर, 2017 को स्वीकृति दी। जिसमे चिकित्सा परिषद 1956, अधिनियम को बदलना, चिकित्सा शिक्षा सुधार के क्षेत्र में दूरगामी कार्य करना, प्रक्रिया आधारित नियमन के बजाए परिणाम आधारित चिकित्सा शिक्षा नियमन, स्वशासी बोर्डों की स्थापना करके नियामक के अंदर उचित कार्य विभाजन सुनिश्चित करना, चिकित्सा शिक्षा में मानक बनाए रखने के लिए उत्तरदायी और पारदर्शी प्रक्रिया बनाना, भारत में पर्याप्त स्वास्थ कार्याबल सुनिश्चित करने का दूरदर्शी दृष्टिकोण, नये कानून के प्रत्याशित लाभ हैं, जिनमे चिकित्सा शिक्षा संस्थानों पर कठोर नियामक नियंत्रण की समाप्ति और परिणाम आधारित निगरानी व्यवस्था, राष्ट्रीय लाइसेंस परीक्षा लागू करना। यह पहला मौका होगा, जहां देश के किसी उच्च शिक्षा क्षेत्र में ऐसा प्रावधान लागू किया गया है, जैसा की पहले नीट तथा साझा काउंसलिंग लागू किया गया था। चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र को उदार और मुक्त बनाने से यूजी और पीजी सीटों की संख्या बढ़ेगी और इस अवसंरचना क्षेत्र में नया निवेश बढ़ेगा। आयुष चिकित्सा प्राणाली के साथ बेहतर समन्वय, चिकित्सा महाविद्यालयों में 40 प्रतिशत सीटों के नियमन से किसी भी वित्तीय स्थिति के सभी मेधावी विधार्थियों मेडिकल सीटों तक पहुंच के प्रावधान हैं।

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