रायपुर, केन्द्र सरकार द्वारा नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में लघु वनोपजों के संग्रहण और प्रसंस्करण के छत्तीसगढ़ मॉडल की विशेष रूप तारीफ की गई, कार्यशाला का आयोजन केन्द्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय और केन्द्र की ही संस्था ट्राईबल को-ऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ’ट्राईफेड’ द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। प्रतिभागियों ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ में सहकारिता के आधार पर लघु वनोपजों के कारोबार को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे प्रयासों को देश के अन्य राज्यों के लिए भी अनुकरणीय बताया। कार्यशाला में लघु वनोपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति के अनुरूप देश के विभिन्न राज्यों में आदिवासियों को उचित और न्याय संगत मूल्य दिलवाने के लिए आगामी रणनीति पर विचार विमर्श किया गया। इसके साथ ही लघु वनोपजों के प्रसंस्करण उद्योगों की संभावनाओं पर भी चर्चा की गई। केन्द्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री श्री जुएल ओराम ने कार्यशाला का शुभारंभ किया। इस मौके पर केन्द्रीय आदिवासी मामलों के राज्य मंत्री द्वय श्री जसवंत सिंह भाभोर और श्री सुदर्शन भगत विशेष रूप से उपस्थित थे। राष्ट्रीय कार्यशाला में छत्तीसगढ़ सरकार के वन विभाग के प्रमुख सचिव श्री आर.पी. मंडल, विशेष सचिव (आदिवासी विकास) श्रीमती रीना बाबा साहेब कंगाले, प्रधान मुख्य वन संरक्षक और राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ के प्रबंध संचालक श्री मुदित कुमार सिंह, जगदलपुर वन वृत्त के मुख्य वन संरक्षक श्री श्रीनिवास राव, कांकेर वृत्त के मुख्य वन संरक्षक श्री एच.एल. रात्रे और छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के संबंधित अधिकारी तथा विभिन्न स्व-सहायता समूहों के सदस्य भी शामिल हुए। इस अवसर पर केन्द्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री श्री जुएल ओराम की उपस्थिति में ट्राईफेड और अमेजन के बीच एक सहमति पर हस्ताक्षर किए गए। इस एमओयू के अनुसार छत्तीसगढ़ सहित देश भर के आदिवासियों द्वारा तैयार हस्तशिल्प की वस्तुओं के लिए ऑनलाइन बाजार की सुविधा मिलेगी। केन्द्रीय आदिवासी मामलों के मंत्रालय की सचिव सुश्री लीना नायर और ट्राईफेड के प्रबंध संचालक श्री प्रवीर कृष्ण भी कार्यशाला में मौजूद थे। कार्यशाला में प्रधान मुख्य वन संरक्षक और राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ के प्रबंध संचालक श्री मुदित कुमार सिंह ने छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से प्रस्तुतिकरण दिया। लघु वनोपज के संग्रहण, प्रसंस्करण और उनकी विपणन प्रक्रिया में छत्तीसगढ़ की भूमिका को देशभर से आए प्रतिभागियों ने विशेष रूप से सराहा।प्रस्तुतिकरण में बताया गया कि छत्तीसगढ़ में संयुक्त वन प्रबंधन योजना के तहत वन क्षेत्रों के ग्रामीणों की सात हजार 887 वन प्रबंधन समितियों का गठन किया गया है, जिनमें 27 लाख 63 हजार सदस्य हैं। इनमें महिला सदस्यों की संख्या 14 लाख 36 हजार है। वन क्षेत्रों की सीमा के पांच किलोमीटर भीतर के लगभग ग्यारह हजार गांव इन समितियों के कार्यक्षेत्र में शामिल हैं, जिन्हें 33 हजार 190 वर्ग किलोमीटर के इलाके में वनों की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गई है। संयुक्त वन प्रबंधन समितियों द्वारा लघु वनोपजों के प्रसंस्करण पर आधारित कुटीर उद्योग भी चलाए जा रहे हैं। उनके द्वारा तैयार उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने के लिए संजीवनी केन्द्र भी चलाए जा रहे हैं। इसके अलावा प्रदेश में 901 प्राथमिक सहकारी समितियों के जरिए 13 लाख से ज्यादा परिवारों को हर साल गर्मियों में तेन्दूपत्ता संग्रहण में मौसमी रोजगार भी दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने इस वर्ष तेन्दूपत्ते की संग्रहण दर 1500 रूपए से बढ़ाकर प्रति मानक बोरा 1800 रूपए कर दी है। तेन्दूपत्ता संग्राहकों को बोनस भी दिया जा रहा है। इतना ही नहीं बल्कि उन्हें तेन्दूपत्ते के व्यापार से प्राप्त आमदनी की 80 प्रतिशत राशि प्रोत्साहन पारिश्रमिक (बोनस) के रूप में दी जा रही है। राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा केन्द्र की न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के तहत इन समितियों के माध्यम से साल बीज, हर्रा, इमली, चिरौंजी गुठली, महुआ बीज, कुसुमी और रंगीनी लाख का भी संग्रहण किया जा रहा है। इससे वनवासियों को अच्छी अतिरिक्त आमदनी हो रही है।
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