इस साल अब तक 57 स्टार्टअप्स ने 10 करोड़ डॉलर या उससे अधिक की फंडिंग जुटाई है. हालांकि, इनमें से केवल 3.5 फीसदी कंपनियां ही मुनाफा बना रही हैं. द्वारा देखे गए आंकड़ों से यह बात सामने आई है. पिछले साल इस समय तक करीब 48 स्टार्टअप्स ने 10 करोड़ या उससे अधिक की फंडिंग जुटाई थी.
गौरतलब है कि कंपनियों की संख्या बढ़ने के बावजूद फंडिंग की रकम लगभग उतनी ही रही जितने पिछले साल थी. यह निवेशकों के अधिक सतर्क होने की तरफ इशारा करता है. पिछले साल जिन 48 कंपनियों को 10 करोड़ डॉलर की फंडिंग मिली थी उनमें से 29 फीसदी प्रॉफिटेबल थीं.
कम जोखिम लेना चाह रहे इन्वेस्टर्स
आरबीएसए के मैनेजिंग डायरेक्ट और हेड (इन्वेस्टमेंट बैंकिंग एडवाइजरी) अजय मलिक ने कहा है कि भले ही 2022 में 10 करोड़ या उससे अधिक फंडिंग जुटाने वाली कंपनियों की संख्या बढ़ी हो लेकिन जुटाई गई कुल रकम स्थिर बनी हुई है. उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि डील का साइज घटा है और निवेशकों के बीच जोखिम लेने की इच्छाशक्ति भी कम हुई है.
वित्तीय तनाव में भारत का स्टार्टअप बाजार
वेंचर इंटेलिजेंस के अनुसार, 10 करोड़ डॉलर या उससे अधिक की फंडिंग प्राप्त करने वाली केवल 3.5 फीसदी कंपनियों ने ही अपना एबिटडा सकारात्मक दिखाया है. जबकि पिछले साल ऐसी कंपनियां 29.2 फीसदी थीं. इससे पता चलता है कि भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम वित्तीय तनाव में है. एबिटडा का मतबल टैक्स, इंटरस्ट और डेप्रीशियएशन से पहले की आय है. हालांकि, सभी स्टार्टअप्स का एबिटडा रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होता इसलिए वेंचर इंटेलिजेंस डेटा में केवल वे कंपनियां शामिल होती है जिनका डेटा एक्सेस हो सकता है. इस साल समीक्षाधीन कुल स्टार्टअप्स में से 45 का एबिटडा उपलब्ध नहीं है और केवल 2 कंपनियों ने यह सकारात्मक दिखाया है. पिछली 18 कंपनियों का डेटा उपलब्ध नहीं था और 14 ने एबिटडा सकारात्मक दिखाया था.
फंडिंग को लेकर क्या बदला?
जानकारों का मानना है कि निवेशक अब भविष्य में ग्रोथ संभावनाओं के बजाय स्टार्टअप्स का प्रॉफिट देखकर इन्वेस्ट कर रहे हैं. हालांकि, पहले भी फंडिंग देते समय का आकलन का यही तरीका था लेकिन पिछले कुछ समय से यह बदल गया था और निवेशक ग्रोथ प्रोस्पेक्ट पर ही फंडिंग मुहैया करा देते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं किया जा रहा है और फंडिंग देने के लिए प्रॉफिट एक महत्वपूर्ण पहलू है.