वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का कच्चे तेल का आयात बिल लगभग दोगुना होकर 119 अरब डॉलर पर पहुंच गया. यूक्रेन-रूस युद्ध और ईंधन की मांग में फिर तेजी आना इसके मुख्य कारण रहे. तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम प्लानिंग ऐंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के अनुसार, भारत ने बीते वित्त वर्ष कच्चे तेल के आयात पर 119.2 अरब डॉलर खर्च किए जो इससे पिछले वित्त वर्ष में खर्च किए गए 62.2 अरब डॉलर से लगभग दोगुना है.
भारत ने केवल मार्च में कच्चे तेल के आयात पर 13.7 अरब डॉलर खर्च किए. इस दौरान तेल की कीमत 14 साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई थीं. जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष के समान महीने में भारत ने तेल आयात पर 8.4 अरब डॉलर खर्च किए थे. गौरतलब है कि भारत कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक देश है.
140 डॉलर बैरल तक पहुंचा तेल
जनवरी में तेल की कीमतों में वृद्धि शुरू हुई और प्रति बैरल 100 डॉलर से होते हुए मार्च की शुरुआत में 140 डॉलर प्रति बैरल को छू गईं. इसके बाद फिलहाल कच्चे तेल की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 106 डॉलर प्रति बैरल के करीब हैं. पीपीएसी के अनुसार, भारत ने 2021-22 में 212.2 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 196.5 मिलियन टन था. हालांकि, ये अब भी महामारी से पहले 2019-20 में आयात किए गए 227 मिलियन टन से कम है. 2019-20 में आयात पर 101.4 अरब डॉलर खर्च हुए थे. गौरतलब है कि कच्चे तेल के आयात पर अधिक खर्च देश की मैक्रोइकोनॉमिक पर निश्चित रूप से प्रभाव डालेगा.
भारत की रिफाइनिंग क्षमता बेहतर
देश अपनी जरुरत का 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है जो कु 2020-21 में थोड़ा घटकर 84.4 फीसदी तक पहुंच गया था. फिलहाल भारत जरुरत का 85.5 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है. हालांकि, भारत की रिफाइनिंग क्षमता सरप्लस में होने के कारण यह कई पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स (कच्चे तेल की रिफाइनिंग के बाद बने उत्पाद जैसे पेट्रोल व डीजल) को निर्यात करता है. हालांकि, भारत में एलपीजी का उत्पादन कम है इसलिए इसे सऊदी अरब जैसे देशों से आयात किया जाता है. भारत ने वित वर्ष 2021-22 में 40.2 मिलियन टन पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का 24.2 अरब डॉलर में आयात किया जबकि 42.3 अरब डॉलर में 61.8 मिलियन टन पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का निर्यात किया.