राधेश्याम वर्मा (काल्पनिक नाम) अगले साल रिटायर होने वाले हैं. वे जिस घर में रहते हैं, उस पर कोई लोन नहीं है. उनके बच्चे विदेश में सेटल हो गए हैं. उनके अब लौटने की उम्मीद नहीं है. रिटायरमेंट के बाद उन्हें 1.5 करोड़ रुपये मिलेंगे. साथ ही, उन्होंने अपने विभिन्न इनवेस्टमेंट अकाउंट में 50 लाख रुपये जमा किए हैं. रिटायरमेंट के बाद वर्मा को पेंशन नहीं मिलेगी. उनका मंथली खर्च 60-70 हजार रुपये प्रति महीने है. निश्चित तौर पर उम्र के इस पड़ाव पर कोई बैंक या वित्तीय संस्थान उन्हें रिटायरमेंट के बाद होने वाले खर्च के लिए लोन भी देने में आनाकानी करेगा. वर्मा वक्त की नजाकत को समझते हैं, इसीलिए वे खर्च के लिए बच्चों पर भी डिपेंड नहीं होना चाहते हैं.
ऐसी कहानी या मनोदशा सिर्फ वर्मा की नहीं है. बल्कि रिटायर हो चुके या जल्द रिटायर होने वाले अधिकतर लोगों की है. हालांकि, जब भी रिटायटमेंट प्लानिंग की बात होती है, अधिकतर लोग इसे अहमियत नहीं देते हैं. इसके विपरीत विशेषज्ञों का मानना है कि जितनी जल्दी आप अपने रिटायरमेंट की तैयारी करेंगे, वह आपके भविष्य के लिए उतना ही अच्छा होगा. इसके लिए सिंपल बकेट स्ट्रेटेजी तैयार करनी होगी, जिसमें विभिन्न खर्च के सूटेबल एसेट्स बकेट्स होंगे. इसमें एक बकेट रेगुलर इनकम की जरूरत के लिए होगा. वहीं, दूसरा ऐसी आय के लिए होगा, जिसका रिटर्न महंगाई दर के मुकाबले ज्यादा हो.
दो बकेट्स में बांटें जमा पूंजी
फाइनेंसियल एडवाइजर ने वर्मा को 2 करोड़ रुपये को दो बकेट्स में बांटने की सलाह दी है. पहला बकेट रेगुलर इनकम और इमरजेंसी खर्च के लिए होगा. इसके लिए 60-70 लाख रुपये अलग करना होगा. इसे हाई क्वालिटी वाले डेट फंड्स में जमा करना होगा. साथ ही इस फंड से प्रत्येक महीने 60-70 हजार रुपये के ऑटोमैटिक विड्राल को सेट अप करना होगा. इससे उनके 9-10 साल के खर्च का इंतजाम हो जाएगा. इमरजेंसी के वक्त वर्मा इस फंड से कभी भी पैसे निकाल सकते हैं. यानी इसमें लिक्विडिटी की समस्या नहीं होती. साथ ही वे कुछ पैसे सरकार की सीनियर सिटीजंस सेविंग्स स्कीम में भी जमा कर सकते हैं