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Covid-19: कोरोना पर काबू पाने में क्या मुश्किल आ रही, हर्ड इम्युनिटी काम क्यों नहीं कर रही… जानें सबकुछ

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भारत में कोरोना केस फिर से बढ़ने शुरू हो गए हैं. सोमवार को एक दिन पहले के मुकाबले 90 फीसदी ज्यादा केस दर्ज किए गए. हालांकि इनकी संख्या 2183 ही थी. 11 हफ्ते की गिरावट के बाद कोरोना केसों की तेजी से बढ़ती संख्या ने वैज्ञानिकों को ही नहीं, सरकार और आम लोगों को भी चिंता में डाल दिया है. लोगों के दिमाग में ये सवाल कौंध रहा है कि ये कहीं कोरोना की चौथी लहर की शुरुआत तो नहीं. लोग ये भी सवाल पूछने लगे हैं कि कोविड वैक्सीनेशन के बाद जिस हर्ड इम्युनिटी की उम्मीद जताई जा रही है, आखिर उसकी क्या स्थिति है. क्या भारत ने कोरोना के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी हासिल कर ली है, अगर नहीं तो इसमें समस्या क्या है. कोरोना पर काबू करने में आखिर क्या दिक्कत आ रही है. आइए इन्हीं सब सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं.

इम्युनिटी क्या है और कैसे बनती है?
बीमारी फैलाने वाले वायरस के खिलाफ हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता या इम्युनिटी दो तरह से विकसित होती है. पहली, प्राकृतिक तरीके से और दूसरी वैक्सीनेशन के जरिए. प्राकृतिक तरीके में हमारा शरीर का सिस्टम किसी वायरस के खिलाफ खुद ही अपने अंदर ऐसी क्षमता विकसित कर लेता है, जिससे वह वायरस का अगला हमला होने पर उसका मुकाबला कर पाए. दूसरे तरीके में जब हमारे शरीर में किसी खास वायरस के खिलाफ खुद एंटीबॉडीज नहीं बन पातीं तो उसे बाहर से वैक्सीन के जरिए उस खास वायरस या उसके जैसे प्रतिरूप का झांसा दिया जाता है. इससे शरीर को लगता है कि वायरस का असल हमला हुआ है और वो उससे निपटने के लिए खुद को तैयार करने लगता है. इसके बाद जब असल वायरस हमला करता है तो हमारा शरीर पहले से उसके लिए तैयार रहता है. तब वायरस ज्यादा खतरनाक रूप नहीं ले पाता. वैक्सीन की इसी प्रक्रिया के जरिए पोलियो और स्मॉलपॉक्स जैसी बीमारियों को खत्म करने में कामयाबी हासिल हुई है.
हर्ड इम्युनिटी क्या होती है?
बाकी वायरसों की तरह कोरोना के SARS-CoV-2 वायरस पर भी इम्युनिटी इसी तरह काम करती है. प्राकृतिक रूप से प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने में समय लगता है, और कभी कभी सभी के अंदर ये खुद डेवलप नहीं हो पाती. जब कोई खास बीमारी फैलती है तो इसे खत्म होने में कभी-कभी लंबा वक्त लग जाता है. बीमारी का वायरस एक से दूसरे में फैलता है. जब आबादी का एक बड़ा हिस्सा उस वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेता है तब वायरस को फैलने के लिए नए शरीर नहीं मिल पाते और वह धीरे-धीरे बेअसर होने लगता है. इसी को हर्ड इम्युनिटी कहते हैं. वैज्ञानिक मानते रहे हैं कि 60 से 70 फीसदी आबादी अगर कोरोना वायरस से खुद संक्रमित होकर ठीक हो जाए या फिर वैक्सीन के जरिए नियंत्रित संक्रमण करके शरीर को लड़ने के लिए तैयार कर दिया जाए तो हर्ड इम्युनिटी हासिल की जा सकती है.

कोरोना में हर्ड इम्युनिटी की स्थिति क्या है?
भारत कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में रहा है. कोई भी राज्य, जिला और गांव कोविड से बच नहीं पाया. हालांकि कितने लोग SARS-CoV-2 वायरस की चपेट में आए हैं, इसका सटीक आंकड़ा देना मुश्किल है. कई राज्यों में बहुत से कोविड केस दर्ज ही नहीं हो पाए. लेकिन राहत की बात ये है कि देश की 98 फीसदी से ज्यादा बालिग आबादी को कोविड वैक्सीन की कम से कम एक डोज लग चुकी है. मतलब भारत में निर्धारित लोगों में इम्युनिटी बन चुकी है, चाहे वह प्राकृतिक रूप से हो या वैक्सीन के जरिए. लेकिन ये कोरोना वायरस को रोकने के लिए काफी साबित नहीं हो पा रही है. इसकी एक वजह अफ्रीका जैसे कई देशों में कम वैक्सीनेशन को भी माना जाता है. WHO का कहना है कि जब तक सभी देशों के ज्यादातर लोगों को वैक्सीन नहीं लग जाती, कोरोना के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी को पाना बेहद मुश्किल होगा. बिना वैक्सीन वाले लोगों में कोरोना वायरस घुसपैठ करके संक्रमण फैलाता रहेगा.

कोरोना को काबू करने में क्या दिक्कत है?
कोरोना को काबू करने में मुश्किलें इसलिए भी आ रही हैं क्योंकि इसका वायरस तेजी से रूप बदल रहा है. कोरोना से शुरूआती वैरिएंट अपना असर खो चुके हैं. भारत में कोरोना की दूसरी लहर के लिए इसके डेल्टा वैरिएंट को जिम्मेदार माना जाता है. तीसरी लहर ओमिक्रोन वैरिएंट, खासकर इसके BA.1 और BA.2 स्ट्रेन की वजह से आई. अब ओमिक्रोन के नए-नए रूप सामने आ रहे हैं- BA.1.1, BA.3, BA.4 और BA.5. इनमें से आखिरी दो को तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले हफ्ते ही लिस्ट में शामिल किया है. BA.3 कुछ देशों में मिला है लेकिन ज्यादा घातक नहीं है. BA.4 दक्षिण अफ्रीका, डेनमार्क, बोत्सवाना, स्कॉटलैंड और इंग्लैंड में मिल चुका है. BA.5 को अफ्रीका और बोत्सवाना में देखा गया है.

इनके अलावा कोरोना के दो वायरसों के मिलन से बना XE वैरिएंट भी खतरे का सबब बन रहा है. यूके में XQ, डेनमार्क में XG, फिनलैंड में XJ और बेल्जियम में XK वैरिएंट भी देखे गए हैं. कुछ स्टडी से पता चला है कि XE वैरिएंट 20 फीसदी तक ज्यादा संक्रमण फैलाता है. कोरोना वायरस के इतनी तेजी से बदलते रूपों की वजह से भी हर्ड इम्युनिटी का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल हो रहा है. जब तक ज्यादातर लोगों में कोरोना के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं होती, इसके नए-नए वैरिएंट आते रहेंगे. हालांकि राहत की बात ये है कि वैक्सीनेशन से मिली इम्युनिटी की बदौलत कोरोना के पिछले वायरस ज्यादा जानलेवा नहीं रहे हैं.

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