वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने बजट 2022-23 में दीर्घावधि विकास (Long Term Growth) के लिये ढांचागत सुधारों (Structural Reform) का रास्ता न अपनाकर सरकारी व्यय में बढ़ोतरी की गली पकड़ी है. सरकार ने बजट में कोई नया टैक्स नहीं लगाया है और न सब्सिडी या लोकलुभावन वादों में खर्च बढ़ाया है. इससे पॉजिटिव सेंटिमेंट पैदा होंगे जो दीर्घावधि विकास में बहुत लाभदायक होते हैं. यह कहना है अमांसा कैपिटल (Amansa Capital) के आकाश प्रकाश का.
आकाश ने कहा कि यह बजट विकास में कितना और क्या योगदान देगा, यह सरकार, सरकारी व्यय (Government Expenditure) के लिये रखी गई भारी भरकम रकम के इस्तेमाल करने के तरीके पर निर्भर करेगा. आकाश का मानना है कि सरकार ने राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) की ज्यादा परवाह न करते हुये विकास के लिये जुआ खेला है. अगर सरकार अगर सही तरीके और सही जगह खर्च करके ढांचागत निर्माण को गति दे देगी तो निश्चित ही दीर्घावधि विकास की संभावनायें और मजबूत हो जायेंगी. आकाश प्रकाश का कहना है कि सरकार ने इस बार ढांचागत सुधारों के लिये जो कदम उठाये हैं, वो ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हैं. उनसे निवेशक आकर्षित नहीं होंगे.
ढांचागत सुधारों से किनारा
आकाश प्रकाश का कहना है कि दीर्घावधि विकास को गति देने का एक रास्ता गंभीर ढांचागत सुधारों से होकर जाता है. इस रास्ते को इस बजट (Budget 2022) में नहीं चुना गया है. बजट में बड़े सुधार करने के लिये कोई पहल नहीं की गई है. पिछले बजट में बड़े ढांचागत सुधारों जैसे पब्लिक सेक्टर के बैंको का निजीकरण की पहल सरकार ने की थी. ढांचागत सुधार काफी विवादास्पत होते हैं जैसे श्रम सुधार. ये अर्थव्यवस्था में सरकार की भागीदारी को कम करते हैं और सरकारी संपत्ति का मुद्रीकरण करते हैं. बजट में कर प्रशासन को सरल बनाने (Ease Tax Administration), कंपनियों के लिक्विडेशन को गति देने, राष्ट्रीय भू-रजिस्टर बनाने (National Register For Land Records), स्टार्टअप को इंसेंटिव देने और विदेशी यूनिवर्सिटीज को GIFT सिटी में प्रवेश देने के की बात कही गई है. परंतु ये बहुत सुक्ष्म कदम हैं और निवेशकों का इन पर ध्यान पड़े, ये जरूरी नहीं है.
खर्च बढ़ाने पर जोर
आकाश प्रकाश का मानना है कि मुख्यत: बजट का फोकस सरकारी खर्च (Government Expenditure) में वृद्धि पर ही रहा है. वित्त वर्ष 22 (FY 22) में खर्च किये गये 6 ट्रिलियन खर्च में 25 फीसदी का इजाफा कर इसे 7.5 ट्रिलियन करने की कसरत बजट में खूब की गई है. अगर हम एयर इंडिया की गारंटी को निकाल दें, तो वास्तव में इसमें 36 फीसदी की बढ़ोतरी लाइक टू लाइक बेसिक पर हुई है और यह 5.5 ट्रिलियन में से बढ़कर 7.5 ट्रिलियन हो गया है. यह बहुत बड़ी वृद्धि है, क्योंकि वित्त वर्ष 2021 में यह आंकड़ा 4.26 ट्रिलियन था. इस तरह दो साल में पूंजीगत खर्च में यह 76 फीसदी का उछाल आ गया है.
सब्सिडी में कटौती
आकाश प्रकाश का कहन है कि पूंजीगत व्यय की ओर झुकाव इस तथ्य से भी स्पष्ट हो जाता है कि वित्त वर्ष 2023 के बजट अनुमानों में केंद्र सरकार के राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) को वास्तव में 8.5 प्रतिशत कम ही आंका गया है. वित्त वर्ष 2023 में सरकार के वृद्धिशील खर्च (Incremental Spending) में से 85 प्रतिशत तो पूंजीगत व्यय (Capital Spend) में ही जा रहा है. सरकार की प्राथमिकता या मंशा की कोई स्पष्ट अभिव्यक्ति नजर नहीं आ रही है. पूंजीगत व्यय, सब्सिडी में 1.15 ट्रिलियन की कटौती कर संभव बनाया गया है. जबकि सभी सोच रहे थे कि इस चुनावी मौसम में लोकलुभावन बजट होगा जिसमें कई तरह की सब्सिडी का ऐलान होगा. लेकिन, ऐसा न करके सरकार ने देश की दीर्घकालिक विकास संभावनाओं को बढ़ाने के लिये प्रयास किया है.
व्यय का भार सरकार ने अपने कंधों पर लिया
आकाश प्रकाश सरकार के दृष्टिकोण में स्पष्ट बदलाव देखते हैं. उनका कहना है कि वित्त वर्ष 22 में भी, राजकोषीय घाटे को कम करने के लिये टैक्स रेवेन्यू का प्रयोग करने की बजाय सरकार ने सारा रेवेन्यू खर्च कर दिया और राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) को 6.9 प्रतिशत पर रखा. वित्त वर्ष 2023 में, राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 6.4 प्रतिशत रखा गया है. इस लक्ष्य में बहुत कम गिरावट लाई गई है. सरकार ने एक सोचा समझा कदम उठाया है. क्योंकि, वर्तमान परिस्थितियों में कोई यह अनुमान नहीं लगा सकता कि निजी क्षेत्र के पूंजीगत खर्च (capital spending) में कितना सुधार होगा. इसलिये सरकार ने यह भार अपने कंधों पर लिया है.
उत्पादक कार्यों में लगे तो मिले फल
अब यही उम्मीद है कि सरकार इस भारी भरकम पूंजी को उत्पादक कार्यों में खर्च करे जिससे की निजी निवेश में भी उछाल आये. अगर सरकारी पूंजी, बुनियादी ढांचे के निर्माण में तेजी ला पाती है तो यह देश की दीर्घकालीन विकास संभावनाओं में और सुधार करेगी. सरकार द्वारा किये गये निवेश से रेवेन्यू में उछाल देखने को मिल सकता है और समय के साथ फिस्कल कंसोलिडेशन को भी यह सक्षम बनायेगा. इसे कोई स्टॉक मार्केट में आई तेजी से समझ सकता है. इससे लगता है कि यह ग्रोथ को गति देगा और कॉर्पोरेट प्रॉफिट में भी निरंतरता बनाये रखेगा.
नया टैक्स न लगाना स्थिरता का संकेत
टैक्स में बदलाव नहीं किया है और कैपिटल गैन टैक्स भी अपरिवर्तीत रहा है. किसी भी तरह के नये टैक्स न लगाने से सकारात्मक बरकरार रहेगी. इससे स्थिरता आयेगी. निवेशक स्थिरता ही चाहते हैं. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार सही तरीके से उत्पादक जगह इस भारी भरकम रकम को खर्च सकेगी. सरकार ने राजकोषीय घाटे की ज्यादा परवाह न करते हुये विकास के लिये जुआ खेला है.