पीएम मोदी (PM Modi) के आह्वान पर जब पूरा देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा, तब स्वतंत्रता की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देने वाले ऐसे अनेक वीरों की कहानियां सामने आ रही हैं जिन्हें देख कर जुबान पर बरबस यही आता है कि कहां गये वो लोग औऱ उनकी अमर कहानियां. कुछ ऐसा है किस्सा है जबलपुर के गौड़ राजा शंकरशाह और उनके बेटे रघुनाथशाह का. 1857 में दोनों की कुर्बानी की पूरे देश को अवगत कराने का बीड़ा उठाया है जबलपुर के बीजेपी सांसद राकेश सिंह ने. 18 सितंबर को अंग्रेजों ने दोनों को तोप से उड़ाया था, उस दिन अमित शाह जबलपुर में होंगे और उन्हें श्रद्धांजलि भी देंगे.
18 सितंबर 1857 को प्रातः 11बजे जब तोप के आगे गौड़ राजा शंकरशाह और रघुनाथशाह को बांधा गया तो उनके चेहरों पर किसी प्रकार का डर या भय नहीं था.. बिलकुल शांत चित्त होकर खड़े थे… उसके उपरांत तोप के गोले से उड़ाए जाने के आदेश के पूर्व.. राजा शंकरशाह ने स्वरचित कविता का पहला छंद गाया जिसमें अंग्रेजों के सर्वनाश की प्रार्थना की थी. इसी कविता को अंग्रेजों ने अपराध का एक आधार बनाया था. कविता का प्रथम छंद राजा शंकरशाह ने इस प्रकार गाया “मूंद मुख डंडिन को चुगलों को चबाई खाई… खूंद डार दुष्टन को शत्रु संघारिका.. मार अंगरेज रेज पर देई मात चंडी.. बचे नहीं बेरी बाल बच्चे संहारिका.. संकर की रक्षा कर दास प्रतिपाल कर.. दीन की पुकार सुन जाय मात हालिका.. खाय ले म्लेच्छन को झेल नहीं करो मात.. भच्छन कर तत्छन ही बैरिन को घौर मात कालिका.
दूसरा छंद पुत्र रघुनाथशाह ने और भी उच्च स्वर में सुनाया. कालिका भवानी माय अरज हमारी सुन .. डार मुण्डमाल गरे खड्ग कर धर ले .. सत्य के प्रकाशन औ असुर बिनाशन कौ.. भारत समर माँहि चण्डिके संवर ले.. झुंड – झुंड बैरिन के रुण्ड मुण्ड झारि-झारि.. सोनित की धारन ते खप्पर तू भर ले.. कहै रघुनाथशाह माँ फिरंगिन को काटि-काटि.. किलकि – किलकि माँ कलेऊ खूब कर ले.”… इसके बाद लेफ्टिनेंट क्लार्क के आदेश पर दोनों महारथियों को तोप गोले से उड़ा दिया गया. यह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भारत में प्रथम बलिदान था, जिसमें जबलपुर से ही सर्वप्रथम भारत में किसी रजवाड़े परिवार की ओर से प्रथम बलिदान था जिनको तोप के गोले से उड़ाया गया था.
जबलपुर से बीजेपी सांसद राकेश सिंह ने कहा कि देश की आज़ादी में अनेक क्रांतिकारियों ने बलिदान दिया है लेकिन जबलपुर में भी ऐसे वीर क्रांतिकारी बलिदानी रहे हैं जिन्होंने अंग्रेजों से समझौता न करते हुए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया और जिनकी कुर्बानी के बारे में देश को भी जानना चाहिये. ऐसे ही आदिवासी जननायक राजा शंकरशाह, कुँवर रघुनाथ शाह ने भी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया.