अमेरिका, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस, जर्मनी और कतर ने अपने भारतीय नागरिकों (Indian Nationals) को अफगानिस्तान (Afghanistan Crisis) से निकालने पर सहमति जताई है. ये भारतीय नागरिक इन 6 देशों के लिए अफगानिस्तान में काम कर रहे थे. बाद में भारत सरकार इन नागरिकों को वापस स्वदेश लाएगी. माना जा रहा है कि इससे अफगानिस्तान (Afghanistan Crisis) में फंसे लोगों को निकालने के काम में आसानी होगी. बता दें कि सोमवार को अफगानिस्तान से 146 भारतीय नागरिकों को काबुल से दोहा ले जाया गया, जबकि 78 अन्य नागरिकों को काबुल से एयरफोर्स के C-130 विमान के जरिए निकाला गया.
हालांकि काबुल एयरपोर्ट पर फायरिंग की घटना के बाद कोई अन्य विमान उड़ान नहीं भर सका. फायरिंग की इस घटना में पश्चिमी देशों की सेनाओं के लिए काम कर रहा, एक अफगानी सुरक्षा गार्ड मारा गया, जिसकी वजह से एयरपोर्ट पर भगदड़ मच गई. वहीं मंगलवार को भी काबुल से एक फ्लाइट ने उड़ान भरी और कई सारे हिंदू और सिख लोगों को भारत लेकर आई. अफगानिस्तान से निकासी की प्रक्रिया में भारतीय नागरिकों को प्राथमिकता दी जा रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल के साथ फोन पर अफगानिस्तान की स्थिति को लेकर चर्चा की. दोनों नेताओं ने बातचीत में अफगानिस्तान में शांति और सुरक्षा की स्थिति पर चर्चा की और काबुल में फंसे लोगों को निकालने को प्राथमिकता देने पर सहमति जताई. मोदी और मर्केल ने इस पर भी सहमति जताई कि अफगानिस्तान की सुरक्षा स्थिति का प्रभाव क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था पर भी पड़ेगा.
इससे पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शनिवार को अपने समकक्ष जर्मनी के विदेश मंत्री हीको मास के साथ बातचीत की और अफगानिस्तान से लोगों को निकालने की प्रक्रिया पर बात की. वहीं पिछले हफ्ते न्यूयॉर्क दौरे के दौरान फ्रांस के विदेश मंत्री जीन वेस ली ड्रियन के साथ भी एस. जयशंकर ने बात की और अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा की.
जर्मनी की सेना ने एक दिन पहले इस बात की पुष्टि की थी कि काबुल एयरपोर्ट पर हुई फायरिंग की घटना में अमेरिका और जर्मनी की सेनाएं भी शामिल थीं. सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक काबुल एयरपोर्ट पर हिंसक संघर्ष तब शुरू हुआ, जब एयरपोर्ट के बाहर से एक स्नाइपर ने अफगान गॉर्ड्स को निशाना बनाया, जोकि अमेरिकी फौजों की मदद कर रहा था. फायरिंग में तीन अफगान गॉर्ड घायल हुए हैं.