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भारत अपनी 85 फीसद मेडिकल उपकरण जरूरतों के लिए विदेशों पर निर्भर, यह सूरत बदलने की जरूरत

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देश में बरकरार ऑक्सीजन उपकरणों की किल्लत के बीच भारत में मेडिकल उपकरण उत्पादनों की सबसे बड़ी संस्था  AIMED ने कई लंबित सुधारों को रफ्तार देने की मांग की है. साथ ही संस्था ने केंद्रीय गृह सचिव को चिट्ठी लिखकर इस बात का आग्रह किया है कि देश के विभिन्न इलाकों में पुलिस ऑक्सीजन कंसंट्रेटर जैसे जरूरी उपकरणों के आयातकों को परेशान कर रही है. जिसका असर आयात की कमी के तौर पर आम लोगों को ही उठाना पड़ेगा. इस विषय पर एबीपी न्यूज ने बात की AIMED के संयोजक राजीव नाथ से. 

राजीव नाथ ने कहा कि भारत में ऑक्सीजन उपकरणों की मांग काफी तेजी से बढ़ी है. देश में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर जैसे उपकरणों का घरेलू उत्पादन महज 5 हजार है, जबकि मौजूदा मांग 50 हजार उपकरण प्रतिमाह से ज्यादा की है. 

राजीव नाथ ने बताया कि सरकार ने बीते दिनों आयात शुल्क में कटौती की है. बड़े पैमाने पर लोग ऑक्सीजन कंसंट्रेटर आयात कर रहे हैं. इस काम में परंपरागत आयातक और उत्पादकों के अलावा कई मौसमी लोग भी इस समय लगे हुए हैं. यहां तक कि छात्र संगठन, आरडब्ल्यूए और सामाजिक संगठन भी अपने संपर्कों से कर रहे हैं. 

उन्होंने कहा, “भारत में बढ़ी मांग के कारण यूरोप, अमेरिका और चीन के विभिन्न उत्पादकों से सामान खरीदे जा रहे हैं. लेकिन बढ़ी जरूरतों के कारण उपलब्धता भी प्रभावित हुई  है. चीन में भी जो ऑक्सीजन कंसंट्रेटर 250 डॉलर का पहले मिल रहा था वो अब 550 डॉलर प्रति उपकरण की कीमत में मिल रहा है. इसके साथ ही माल ढुलाई भी 3 डॉलर प्रति किलो की दर पर समुद्र की बजाए हवाई मार्ग से और करीब 10 डॉलर प्रति किलो की बढ़ी दर से हो रही है.”

राजीव नाथ ने कहा कि इन कारणों के चलते, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर महंगे दाम पर भारत में आ रहे हैं. साथ ही लॉकडाउन के कारण उनकी वितरण लागत भी प्रभावित हुआ है. ऐसे में जरूरतमंद लोगों को भी अधिक दामों पर सामान मिल रहा है. 

राजीव ने कहा कि यह समझना होगा कि ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, फिलहाल न तो आवश्यक वस्तु अधिनियम में आता है, न ही NPPA के तहत इसके दामों को नियंत्रित किया गया है. सरकार ने एपिडेमिक एक्ट के तहत इसकी कीमत और उपलब्धता  के बारे में भी कोई प्रावधान नहीं किया है. इसके कारण कई लोग इसका फायदा भी उठा रहे हैं. बेहतर होगा कि सरकार इसका नियमन करे ताकि गुणवत्ता और कीमत भी नियंत्रित रहे. 

AIMED ने अपने सभी 500 से अधिक सदस्यों से कहा कि है इसके दामों को आयात लागत से ढाई से तीन गुना कीमत से ज्यादा पर न बेचा जाए. इस समय लोगों के लिए इन जरूरी उपकरणों की उपलब्धता महत्वपूर्ण है. 

राजीव नाथ कहा, “भारत आज अपनी 85 फीसद मेडिकल उपकरण जरूरतों के लिए विदेशों पर निर्भर है. ऐसे में जरूरत है कि कर प्रणाली और पर्फार्मेंस लिंक इंसेंटिव योजना में मेडिकल उपकरणों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए. यदि किसी व्यक्ति के लिए आयात की लागत उत्पादन से कम है तो कोई भी कारोबारी उसके लिए फैक्ट्री नहीं लगाएगा. इसका खामियाजा है कि भारत को अन्य देशों पर अपनी जरूरत के सामानों के लिए निर्भर रहना होगा.”

उन्होंने कहा कि नीति आयोग ने 2019 में एक ड्राफ्ट बनाया था मेडिकल उपकरणों के लिए. लेकिन दुर्भाग्य से यह विधेयक आज भी ड्राफ्ट ही है. इस महामारी के बाद भी. बेहतर होगा कि संसद इसे पारित करे. साथ ही मेडिकल उपकरणों के उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाए. ताकि भारत महत्वपूर्ण चिकित्सा उपकरणों के मामले में आत्मनिर्भर हो सके. 

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