बहुत से विद्यार्थीं, खासकर ग्रामीण पृष्ठिभूमि के विद्यार्थी, एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य को नहीं समझ पाते.
हमें इस सत्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, पढ़ने-पढ़ाने का जोश कम होता जाता है. दिमाग पर अन्य कई तरह के तनाव और दबाव आने लगते हैं. ऐसी स्थिति में सच्ची और सही पढ़ाई कर पाना आसान नहीं रह जाता.
योजना अधिकतम छब्बीस साल की उम्र तक पूरी हो जाए
इसीलिए मेरा यह मानना है कि आपको अपनी योजना कुछ इस तरह से बनानी चाहिए कि यह इक्कीस साल की उम्र से शुरू हो जाए और अधिकतम छब्बीस साल की उम्र तक पूरी हो जाए. यदि आप बहुत अधिक लिबर्टी लेना चाहें, तो एक साल और ले सकते हैं- सत्ताईस साल की उम्र तक. यह भूल जाएँ कि यूपीएससी द्वारा आपको 32-35 साल तक का समय दिया हुआ
है. कितना अच्छा होता यदि इसे फिर से घटाकर छब्बीस कर दिया जाता.
उम्र का तैयारी से क्या ताल्लुक, ये है जवाब
अधिकतम उम्र में होने वाला यह इजाफा आपको भ्रम में रखने में अपनी अच्छी-खासी भूमिका निभाता है. आप सोचते हैं कि अभी तो बहुत वक्त बाकी है, आगे देख लेंगे. यह एक प्रकार से कहीं न कहीं आपके मन की कमजोरी का सूचक है. मेरा प्रश्न है कि अभी ही क्यों नहीं ? ऐसा क्यों नहीं सोचा जाता कि ‘मैं जमकर अच्छी से अच्छी तैयारी करूँगा और जो कुछ भी होना होगा, छब्बीस-सत्ताईस साल की उम्र तक हो जाएगा. यदि हो गया तो ठीक और यदि नहीं हुआ, तो फिर कुछ और.‘ आखिर कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा न. जब आप ऐसा सोच लेते हैं, तो आपके दिमाग को यह आदेश मिल जाता है कि यहाँ मेरी चालबाजी नहीं चलेगी. फिर आपका यह दिमाग आपके अनुसार काम करना शुरू कर देता है. इसके फलस्वरूपअ आपके अन्दर की शक्तियाँ और क्षमताएँ उभरकर बाहर आने लगती हैं.
सिलेक्शन होना ही उनका एकमात्र उद्देश्य
बहुत से विद्यार्थीं, खासकर ग्रामीण पृष्ठिभूमि के विद्यार्थी, एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य को नहीं समझ पाते. परीक्षा की तैयारी की जद्दोजहद से जूझने के दौरान उन्हें तो केवल यही लगता रहता है कि किसी भी तरह से सिलेक्शन हो जाए. सिलेक्शन होना ही उनका एकमात्र उद्देश्य होता है, जो सही भी है.
किसी एक ही वर्ष में एक ही सर्विस में दो लोगों का चयन
लेकिन इस चक्कर में वे सर्विस-कॅरिअर की इस सच्चाई को भूल ही जाते हैं कि वे जितनी कम उम्र में सिलेक्ट हो जाएँगे, आगे का कॅरिअर उतना ही अधिक बेहतर होगा. वे उतने ही बड़़े पद से रिटायर होंगे. आगे चलकर यह बात बहुत अधिक मायने रखती है. आप इसे इस तरह से सोचकर देखिए कि किसी एक ही वर्ष में एक ही सर्विस में दो लोगों का चयन होता है, जिनमें से एक की उम्र बाईस साल है और दूसरे की उम्र है उन्तीस साल. ये दोनों एक ही बैच के हैं. लेकिन दोनों की उम्र में सात साल का अन्तर है. बाईस साल वाले के पास सर्विस के अड़तीस साल हैं, जबकि उन्तीस साल वाले के पास केवल इकतीस साल. जाहिर है कि अधिक उम्र वाला अपने कॅरिअर के सर्वोत्तम को हासिल नहीं कर पाएगा, जबकि जीवन के उस दौर में सर्वोत्तम ही सबसे ज्यादा मायने रखता है.
ऊपर की कोई पोस्ट खाली होगी, वह सबसे पहले इस सीनियर लड़के को मिलेगी
एक बात और भी होगी. मान लीजिए कि बाईस साल के इस लड़के की रैकिंग उन्तीस साल के लड़के से ऊपर है. ऐसे में हालाँकि हैं तो ये दोनों एक ही बैच के, लेकिन सीनियर और जूनियर की दृष्टि से बाईस साल का लड़का सीनियर कहलाएगा. जब भी ऊपर की कोई पोस्ट खाली होगी, वह सबसे पहले इस सीनियर लड़के को मिलेगी. अभी तो इन बातों का उस तरह इतना अहसास नहीं होता. लेकिन जब आप सर्विस में आ जाएँगे, तब इस तरह के कटु अहसासों से अपने को बचा पाना आपके लिए आसान नहीं होगा. इसलिए क्या यह बेहतर नहीं होगा कि आप अपनी योजना बनाते समय अधिकतम तीस या पैंतीस साल की उम्र को भूल ही जाएँ और देखें कि कैसे अपने लक्ष्य को जल्दी से जल्दी हासिल किया जाए. (लेखक डॉ॰ विजय अग्रवाल, पूर्व सिविल सर्वेंट और afeias के संस्थापक हैं.)