सरकार, साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट और मीडिया लगातार लोगों को साइबर ठगी से बचने के तरीके बताती है. लेकिन ये सलाह अब भी बहुत से लोगों को लगता है समझ नहीं आ रही है. कम पढ़े-लिखे लोग अगर साइबर ठगी का शिकार हो जाए, तो समझ आता है लेकिन उच्च शिक्षित लोग भी जब साइबर क्रिमिनल द्वारा यूज की जा रही बड़ी आम तरकीब के झांसे में आकर ठगे जाएं तो फिर इसे घोर लापरवाही ही कहा जाएगा. ऐसा ही एक मामला मुंबई में सामने आया है. एक एफएमसीजी कंपनी में वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत शख्स को ऑनलाइन ठग (Cyber Fraudster) ने पार्ट टाइम जॉब का झांसा देकर 9 लाख रूपये ठग लिए.
ऐसा नहीं है कि ठग ने इस वैज्ञानिक का मोबाइल हैक करके या निजी जानकारियां जुटाकर उसके खाते से पैसे निकाले हैं. फ्रॉडस्टर के अकाउंट में वैज्ञानिक ने ही उसकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर पैसे जमा करा दिए. नौ लाख रुपये 40 बार में जमा कराए गए. अगर वैज्ञानिक ने हर रोज मीडिया में साइबर ठगी से बचने के लिए प्रकाशित हो रही खबरों पर ही ध्यान दे लिया होता तो उसके पैसे बच सकते थे.
पार्ट टाइम जॉब का झांसा
मुंबई के मलाड पुलिस स्टेशन में अर्चनाकुमार मामिलपल्ली ने अपने साथ हुए साइबर फ्रॉड की एफआईआर दर्ज कराई है. अर्चनाकुमार एक कंपनी में टॉक्सिक्लॉजी साइंटिस्ट है. वे नौकरी बदलना चाहते थे और इसलिए उन्होंने एक जॉब साइट पर अपना रिज्यूमे डाला था. कुछ दिन बाद उनके पास रमेश नामक व्यक्ति का फोन आया और पार्ट टाइम जॉब का ऑफर दिया. इसके लिए अर्चनाकुमार को एक टेलीग्राम ग्रुप ज्वाइन कराया गया. फिर यहां मौजूद एक लिंक के सहारे एक वेबसाइट पर साइन इन करने और 200 रुपये रजिस्ट्रेशन फीस देने को कहा.
अर्चनाकुमार ने रजिस्ट्रेशन कर लिया. वेबसाइट पर बने अकाउंट में काम लेने के लिए शॉपिंग टॉस्क हासिल करने को 250 रुपये जमा कराने को कहा गया. पैसा जमा कराने पर काम दिया गया. इसके बाद वेबसाइट पर ही बने अकाउंट में दूसरी तरफ से पैसे डिपॉजिट भी किए गए ताकि उन्हें भरोसा हो सके. इसी तरह उनसे कई बार थोड़े-थोड़े पैसे जमा कराए गए और फर्जी वेबसाइट पर उनके खाते में उससे ज्यादा पैसे डिपॉजिट किए गए. मामले का भांडा तब फूटा जब अर्चनाकुमार ने पैसे की निकालने की कोशिश की. पैसे विड्रॉ नहीं कर पाने पर उन्होंने रमेश कुमार से शिकायत की.