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‘भगोड़ा’ और ‘दिवालिया’ में क्‍या होता है अंतर, जानें कब और कैसे होती है इसकी घोषणा, क्या होता है असर

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अक्सर हम रोजमर्रा की खबरों में कुछ ऐसे शब्द सुनते हैं, जिन्हें हम कई बार सुन चुके होते हैं, लेकिन उनका सही मतलब हमें पता नहीं होता है. बैंकिंग और कानूनी क्षेत्र में इसी तरह के दो शब्द है– ‘भगोड़ा’ और ‘दिवालिया’. कुछ लोग इन्हें एक ही समझ लेते हैं लेकिन इन दोनों में बहुत अंतर होता है. हालांकि, यह दोनों ही कानूनी रूप से घोषित किए जाते हैं.

आपको बता दें कि दिवालिया यानी डिफॉल्टर किसी व्यक्ति को लोन की राशि नहीं चुकाने पर बैंक द्वारा घोषित किया जाता है. वहीं भगोड़ा कानूनी रूप से फरार व्यक्ति को कहा जाता है. आइए जानते हैं इन दोनों में क्या अंतर होते हैं और कब किसी को भगोड़ा और दिवालिया घोषित किया जा सकता है.

दोनों में क्या होता है अंतर?
अगर कोई व्यक्ति बैंक या किसी अन्य वित्तीय संस्थान से उधार ली गई राशि को लंबे समय तक को लौटाने में असफल रहता है, तो उसे बैंक द्वारा दिवालिया घोषित किया जा सकता है. भगोड़ा शब्द का इस्तेमाल कानूनी रूप से फरार घोषित हो चुके किसी व्यक्ति के लिए किया जाता है. इसमें उसका अपराध कुछ भी हो सकता है. हालांकि, ‘भगोड़ा’ शब्द मीडिया के द्वारा प्रचलन में लाया है, क्योंकि इसका इस्तेमाल सिर्फ बोलचाल की भाषा में किया जाता है. कानून की भाषा भी ऐसे व्यक्ति को फरार ही कहा जाता है.

कब किया जाता है घोषित?
जब किसी व्यक्ति को कानूनी रूप से फरार मान लिया जाता है, तब अपराध प्रक्रिया संहिता यानी CrPC की धारा 82 के तहत फरार व्यक्ति की उद्घोषणा की जाती है. इसे ही मीडिया और आम बोलचाल में भगोड़ा कहा जाता है. जबकि किसी व्यक्ति के दिवालिया होने की घोषणा बैंक द्वारा तब की जाती है, जब संबंधित बैंक से लोन के रूप में उधार ली गई राशि के रिपेमेंट को लंबे समय तक नहीं करता है. फिर चाहे उसकी स्थिति या पेमेंट नहीं करने की वजह कुछ भी हो.

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