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‘नोटबंदी के बाद 2000 रुपये का नोट लाने के पक्ष में नहीं थे पीएम मोदी’, पूर्व प्रधान सचिव ने बताई फैसले की वजह

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‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2000 रुपये के नोट पेश करने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन वह अपनी टीम की सलाह के साथ गए’ – यह कहना है पीएम मोदी के पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र का, जिन्होंने वर्ष 2016 में हुई नोटबंदी की देखरेख की थी. 2000 रुपये के इन नोटों को वापस लेने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की अधिसूचना के ठीक एक दिन बाद उन्होंने News18 के साथ खास बातचीत में यह साफ किया कि इन नोटों को वापस लेने के फैसले को विमुद्रीकरण या नोटबंदी के रूप में बिल्कुल नहीं देखा जाना चाहिए.

नृपेंद्र मिश्र ने News18 से कहा, ‘यह नोटबंदी नहीं है, यह 2000 रुपये के नोटों को वापस लेना है. नोटबंदी के वक्त सलाह दी गई थी कि 2000 रुपये का नोट चलन में लाया जाए, जो प्रधानमंत्री को पसंद नहीं आया था. हालांकि, एक कप्तान के नाते अपनी टीम की सलाह पर उन्होंने इन नोटों की अनुमति दे दी. हालांकि वह तब बेहद स्पष्ट थे और हम भी थे कि यह एक अल्पकालिक व्यवस्था होगी.’

‘गरीबों को इससे परेशानी न हो’
इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘गरीब और मध्यम वर्ग के लोग 2000 रुपये के नोटों का उपयोग नहीं करते हैं, वे 500 रुपये और 100 रुपये जैसे छोटे नोटों का उपयोग करते हैं और प्रधानमंत्री स्पष्ट थे कि वह नहीं चाहते कि गरीब इससे प्रभावित हों.’

शुक्रवार देर शाम हुई घोषणा में, आरबीआई ने इन नोटों को वापस लेने की घोषणा की. RBI ने इसे ‘क्लीन नोट’ नीति का एक हिस्सा बताया, जिसका अर्थ है कि उच्च मूल्यवर्ग के नोटों की शेल्फ लाइफ चार-पांच साल तक कम होती है. इसलिए, यह अपरिहार्य था कि इन नोटों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया जाएगा.

तो इसे लेकर क्या घबराने की कोई वजह है?
इस सवाल पर नृपेंद्र मिश्रा कहते हैं, ‘बिल्कुल नहीं… जिनके पास 2,000 रुपये के नोट हैं, वे अपने बैंकों में जा सकते हैं और पैसे जमा कर सकते हैं या इसे बदल भी सकते हैं. उनके पास चिंतित होने का कोई कारण नहीं है.’

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