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इसरो और नासा की ये सेटेलाइट रखेगी धरती पर पैनी नजर, भूकंप से लेकर भूस्खलन तक की करेगा भविष्यवाणी

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अमेरिका स्थित नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के नेतृत्व में एक बड़े संयुक्त मिशन पर काम चल रहा है. लगभग एक साल बाद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से अपने शक्तिशाली जीएसएलवी को लॉन्च करेगा. इसमें एक एडवांस अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट होगा जो भूमि पर होने वाले परिवर्तनों को अभूतपूर्व विस्तार से ट्रैक करेगा. यह अगले तीन वर्षों में 12 दिनों की नियमितता के साथ पूरे विश्व की मैपिंग करेगा, और यहां तक ​​कि उन स्थानों को भी देखेगा जो अब तक अस्पष्ट थे.

मिशन निसार (नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार) को बनाने में आठ साल लग चुके हैं. दोनों देशों के वैज्ञानिकों ने छोटी और लंबी तरंगदैर्ध्य के लिए इस राडार को अंतिम रूप देने के लिए बहुत मेहनत की है. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एल-बैंड एसएआर पेलोड सिस्टम का निर्माण किया है, तो वहीं उनके भारतीय समकक्षों ने शॉर्ट एस-बैंड एसएआर पेलोड तैयार किया. ये दोनों प्रणालियां मिलकर लगभग 12 मीटर के व्यास वाले एक मेगा रिफ्लेक्टर एंटीना के साथ NISAR बनाती हैं, जो उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के बाद खुल जाएगा. ड्रम के आकार का एंटीना सबसे बड़ा माना जाता है जिसे नासा ने पहले किसी विज्ञान मिशन के लिए अंतरिक्ष में उड़ाया है. भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित ऑन-बोर्ड कैमरे अगले साल की शुरुआत में रॉकेट के अंतरिक्ष में जाने के बाद अंतिम तैनाती को देखने में मदद करेंगे.

सब सेटेलाइट से बेहतर और सबसे अलग
अंतरिक्ष में बहुत सारे ऐसे सेटेलाइट हैं जिनसे पृथ्‍वी का ऑबसर्वेशन किया जा रहा है. लेकिन अब कहा गया है कि निसार उन सभी से बेहतर और सबसे अलग है. वैज्ञानिक समझाते हैं कि पृथ्‍वी पर अभी भी व्यापक क्षेत्र हैं जिनका वे लगातार अध्ययन नहीं कर पाए हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्यादातर खराब मौसम, या चक्रवात या बाढ़ के तुरंत बाद घने बादलों के कारण ऐसे क्षेत्रों पर अध्‍ययन नहीं हो पाया है. अब निसार उन्हें उन बादलों के आर-पार अगले तीन साल तक दिन-रात बेहद सूक्ष्मता से देखने की क्षमता देगा. रडार के सिग्नल घने बादलों को भेद सकते हैं, और पृथ्वी पर व्यापक वनस्पति को उसकी ऊपरी परत में घुसने के लिए भेज सकते हैं. यह अब तक एकत्र किए गए किसी भी अन्य पृथ्वी अवलोकन मिशन की तुलना में बड़े पैमाने पर डेटा उत्पन्न करेगा – एक संकल्प और सटीकता के साथ जो पहले कभी नहीं किया गया है. वास्तव में, रडार 10 मीटर के रूप में छोटे परिवर्तनों का पता लगा सकते हैं, जो विशेषज्ञों को शहरी क्षेत्रों या यहां तक ​​कि शहर के ब्लॉकों के साथ-साथ छोटे कृषि क्षेत्रों में परिवर्तनों का अध्ययन करने में सक्षम बनाता है. रडार से प्रसारित सिग्नल पृथ्वी के जरिए दोबारा ऊपर भेजे जाएंगे जिन्‍हें सेटेलाइट द्वारा प्राप्त किया जाएगा. इसका उपयोग यह अध्ययन करने के लिए किया जाएगा कि पृथ्वी कैसे बदल रही है?

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्‍ययन और आपदाओं की भविष्यवाणी होगी संभव
जब रडार को अगले साल अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया जाएगा, तो यह बड़ी मात्रा में डेटा एकत्र करना शुरू कर देगा कि कैसे भूमि और बर्फ की चादर सहित पृथ्वी बदल रही है. यह अध्ययन करने में मदद करेगा कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के रूप में बर्फ की चादरें कितनी तेजी से पिघल रही हैं, ग्लेशियर बदल रहे हैं और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है. यह भूजल स्तर में कमी का पता लगाने में भी सक्षम होगा, और इसका कितना हिस्सा आस-पास के क्षेत्रों को प्रभावित करता है और क्या भूमि का कोई हिस्‍सा डूबना है. यह अध्ययन करने के लिए पर्याप्त डेटा होगा कि कैसे जंगलों में परिवर्तन हो रहा है, और क्या वृक्षों के आवरण में कोई कमी हो रही है. तटीय क्षेत्रों में परिवर्तनों की जांच करने के लिए डेटा होगा, जो क्‍लाइमेट-प्रेरित खतरों से ग्रस्त हैं.

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