नेताजी सुभाष चंद्र बोस समय से आगे देखने वाली शख्सियत थे. गजब के योजनाकार थे. देशदुनिया की गजब की समझबूझ वाले. वह लगातार एक भारत का सपना देखते थे. आज भी अगर आपके उनके 80-90 सालों पहले के भाषणों को सुनें या उनके लिखे को पढें तो लगेगा ये शख्स जो देख रहा था या समझ रहा था, वह सच में उन्हें देश के दूसरे नेताओं से कितना अलग खड़ा करता था. हमें ये जानना चाहिए कि पराधीनता के अलावा इस देश के कौन से मुद्दे उन्हें परेशान करते थे, जिसके बारे में उन्होंने लगातार कहा कि इसे बगैर सुलझाए हम कैसे ताकतवर देश को बना पाएंगे. वह खुले दिमाग के शख्स थे. मुद्दों की बेहतरीन समझ वाले नेता.
देश सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जन्म वर्षगांठ को देश पराक्रम दिवस के तौर पर मना रहा है. नेताजी देश के ऐसे सेनानी हैं जिनके साहस, सूझबूझ और असंभव को संभव करने की दृढ़इच्छाशक्ति से पूरा देश प्रेरणा लेता रहा है. इस मौके पर नेताजी के विचारों को देखते हुए शायद ये भी उचित समय है कि देखें वह कैसा भारत चाहते थे. कैसा सपनों का भारत उनकी जेहन में था. आजादी के बाद किस तरह के देश का सपना संजोए हुए थे. अपने भाषणों से लेकर पत्रों तक उन्होंने जिस तरह के भारत की बात की, उसके बारे में जानना चाहिए.
सुभाष जानते थे कि अंग्रेज देश का बंटवारा करेंगे
उनके जीते जी ये अवधारणा जमीन पर नहीं उतरी थी कि इस अखंड देश का बंटवारा हो सकता है. अंग्रेज जब जाएंगे तो इसके दो टूकड़े करके कमजोर करके जाएंगे. लेकिन 30 के दशक के आखिर के सुभाष के लेखों और भाषणों में देखें तो ऐसा लगता है कि उन्हें ये समझ थी कि अंग्रेज ये करेंगे. उन्होंने लिखा और कहा था कि अंग्रेज जब किसी देश से विदा होते हैं तो आमतौर पर उसे तोड़ते और कमजोर कर देते हैं. इसे लेकर उन्होंने फलीस्तीन, मिस्र, ईराक से लेकर आयरलैंड की मिसाल दी.
धर्म से लेकर भाषा और महिला-पुरुष के मुद्दे पर साफ सोच
हम देश के सामने तब मौजूदा मुद्दों के बारे में देखें तो तब भी देश भाषा, धर्म, क्षेत्रीयता, और अमीर-गरीब के साथ औद्योगिकरण जैसे मुद्दों पर बंटा था. महिला और पुरुषों के बीच खाई थी. उनकी शिक्षा को लेकर रुढ़िवादी बर्ताव था. देश को ना केवल आजाद होना था बल्कि इसके साथ एकजुट होकर आगे भी बढ़ना था. सुभाष से मिलने वाला हर शख्स उनके शांत और सौम्य व्यवहार के साथ भारतीय मसलों पर दृढ़ निश्चय के साथ बात करने की कला से प्रभावित हुए बगैर नहीं रह पाता था.