-राज्यपाल अनुसुइया उइके से भेंट कर जन संवाद की शुरुआत की गई
-छत्तीसगढ़ में विद्या भारतीय से संबद्ध 1111 विद्यालय संचालित हो रहे
-एक पखवाड़े चलने वाले अभियान में तीन लाख घरों में संपर्क का लक्ष्य
-संपर्क के लिए पूर्व छात्र, शिक्षक और पूर्व शिक्षकों की टोलियां बनाई गई
रायपुर। वर्तमान परिदृश्य में शिक्षा व्यवस्था कैसी होनी चाहिए, इस पर विद्या भारती की ओर से एक बड़े जन संवाद की शुरुआत की गई है। छत्तीसगढ़ प्रांत में विद्या भारती से संबद्ध 1111 सरस्वती शिशु / विद्या मंदिर संचालित हो रहे हैं। इन विद्यालयों में पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं के अभिभावकों और समाज के प्रतिष्ठित लोगों से संवाद की शुरुआत की गई है। इसके लिए अलग-अलग टोलियां बनाई गई हैं। इसमें पूर्व छात्र, शिक्षक और पूर्व शिक्षक शामिल किए गए हैं। एक जनवरी से 15 जनवरी तक चलने वाले इस अभियान की शुरुआत राज्यपाल अनुसुइया उइके के साथ भेंट कर की गई। पहले दो दिनाें में 30 हजार से ज्यादा लोगों से संपर्क किया गया। 15 दिनों में 3 लाख घरों तक पहुंचने का लक्ष्य है।
राज्यपाल अनुसुइया उइके से सुहास देशपांडेय के नेतृत्व में सरस्वती शिक्षा संस्थान के प्रतिनिधिमंडल ने भेंट की। इस दौरान डॉ. देवनारायण साहू, राघवेंद्र जी, विवेक सक्सेना, डॉ. अशोक त्रिपाठी और लीलाधर चंद्राकर मौजूद थे। प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि विद्या भारती ने निरंतर शोध एवं अनुसंधान के माध्यम से भारत केंद्रित समाज उन्मुखी शिक्षा पद्धति विकसित की है। केंद्र सरकार ने नई शिक्षा पद्धति 2020 में विद्या भारती की गई विशेषताओं का समावेश किया है। राज्यपाल उइके ने इन गतिविधियों के लिए संस्थान की पहल की सराहना की। प्रतिनिधिमंडल ने यह भी बताया कि समाज के प्रबुद्ध लोगों, कलाकार, संगीतकार, साहित्यकार, इतिहासकार व राजनेताओं के साथ मिलकर शिक्षा विमर्श अभियान के उद्देश्य को बताया जाएगा।
सरस्वती शिशु मंदिर की शिक्षा संस्कार देने वाली
जन संवाद के अंतर्गत सरस्वती शिक्षा संस्थान के एक प्रतिनिधिमंडल ने वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज से भेंट की। उन्होंने अभियान के उद्देश्यों के बारे में बताया। गिरीश पंकज ने बताया कि उन्होंने सरस्वती शिशु मंदिर के आचार्य के रूप में शुरुआत की है। मनेंद्रगढ़ सरस्वती शिशु मंदिर में वे आचार्य थे। उन्होंने कहा, सरस्वती शिशु मंदिर की शिक्षा संस्कार देने वाली है। संस्कार जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। हम जिस भाषा में शिक्षा ग्रहण करते हैं, हमारे संस्कार उसी तरह हो जाते हैं। यह आवश्यक है कि हम अपनी मातृभाषा और भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत परिवेश में शिक्षा ग्रहण करें।