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कविता : स्वच्छता की मिशाल बनो तुम !

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फैली हुई है चारों तरफ जो गंदगी
थोड़ा सा तो उस पर विचार करो
कौन फैलाता है किस कारण फैलता है
यू ही तो कचरा नही जमा होता है
हममें से ही कोई एक होता है
जिसकी मानसिकता ऐसी होती है
अरे कोई नही देख रहा है यहाँ पर
फेंक दो कचरा जहाँ दिख रही जगह खाली है ये वही महासय है जो
अपने घर को कांच सा चमकाते है
और अपनी गंदगी बाहर फैलाते है
देश को कूड़ा दान बनाते है
जो बाते स्वच्छता की करते है
शर्म आती है ऐसी मानसिकता पर
विदेश जाते है तो खूब तारिफ करते है
साफ सफाई और वहां की खूबसूरती की
वहां जाकर तो हो जाते सब सजग है
यहाँ वहाँ कचरा नही डालना
क्यों बदल जाती है मानसिकता
अपने देश में वापस आते ही
मत बनाओ भारत की ऐसी तस्वीर
मत बनाओ दीवालो को पिकदान
और शहर को कूडादान
थोड़ा सा तो इस पर विचार करो
कम से कम अब तो जागो
स्वच्छता अभियान का हिस्सा बनकर
स्वच्छ भारत बनाने में योगदान दो
साधना दुग्गड़

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