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केवल अदालती आदेश से नहीं मिल सकता न्याय, सही संवाद जरूरी: जस्टिस चंद्रचूड़

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न्याय को हमेशा कोर्ट में जीत या हार और कानूनी मानदंडों को लागू करने के माध्यम से नहीं मापा जा सकता है. पिछले साल एक समलैंगिक जोड़े वाले ‘करवा चौथ’ के विज्ञापन को वापस लेने की घटना का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बावजूद ऐसा हुआ. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर लोग हाशिए के समूहों के हितों के लिए सही संवाद जारी नहीं रखते हैं, तो किया गया न्याय भी जल्द ही पहले की स्थिति में लौट सकता है.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने आईएलएस लॉ कॉलेज, पुणे में न्यायमूर्ति वाईवी चंद्रचूड़ स्मारक व्याख्यान में ‘भारत में मध्यस्थता का भविष्य’ पर जोर देकर कहा कि अदालतों की कार्रवाई सार्वजनिक रूप से अधिकारों का सार्थक दावा करने का एकमात्र तरीका नहीं है. उन्होंने कहा कि हालांकि अदालतें हाशिए के समूहों के हितों की रक्षा के लिए संवैधानिक अधिकारों का विस्तार करती हैं. लेकिन अगर लोग अधिकारों के पक्ष में नहीं रहते हैं तो ‘किया गया न्याय जल्द ही पहले के स्थिति में जा सकता है.’ उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि क्या अदालतों में अधिकारों का दावा करना ही न्याय हासिल करने का एकमात्र तरीका है.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि केवल नवतेज सिंह जौहर मामले में समलैंगिकता के अपराधीकरण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों को उनके अधिकारों का एहसास दिलाने के लिए पर्याप्त नहीं है. उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि फैसले के चार साल बाद करवा चौथ मनाते हुए एक समलैंगिक जोड़े के एक फेयरनेस क्रीम के विज्ञापन को कड़े विरोध के बाद हटा दिया गया. जस्टिस चंद्रचूड़ डाबर के फेम क्रीम ब्लीच द्वारा जारी विज्ञापन का जिक्र कर रहे थे. जिसमें करवा चौथ मनाते हुए एक समलैंगिक जोड़े को दिखाया गया था. सोशल मीडिया पर विज्ञापन के खिलाफ सार्वजनिक गुस्से के बाद कंपनी ने इसे हटा लिया और जनता की भावनाओं को आहत करने के लिए बिना शर्त माफी मांगी.

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