पिछले साल जब कोरोना महामारी अपने चरम पर थी, अमेरिकी फर्मास्युटिकल्स कंपनियों फाइजर और मॉडर्ना ने कुछ कठोर शर्तों के साथ भारत को 30 डॉलर प्रति खुराक में अपनी वैक्सीन की पेशकश की थी. भारत ने इन दोनों वैक्सीन निर्माता कंपनियों से करार करने से मना कर दिया था. कुछ महीने बाद, भारत ने फाइजर और मॉडर्ना से कहा कि वह कोरोना के स्वदेशी टीकों का निर्यात शुरू कर रहा है, अगर वे चाहें तो 2.5 डॉलर प्रति खुराक की दर से खरीद सकते हैं.
इस साल, पूरा भारत, डब्ल्यूएचओ के 4.7 मिलियन अतिरिक्त कोविड मौतों (भारत सरकार का आंकड़ा 5 लाख से कुछ अधिक मौतों का है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत में कोरोना से 47 लाख के करीब मौतें होने का अनुमान है) के अनुमान के विरोध में एक साथ आया. केंद्र सरकार अपने रुख पर अड़ी रही कि ऐसा करना विश्व स्वास्थ्य संगठन के दायरे से बाहर था और अगर उसे ऐसा करना था, तो वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में रिकॉर्ड पर रखते हुए प्रति मिलियन मौतों को दिखाना चाहिए था.
पिछले साल उस समय को याद करें जब कोरोना की दूसरी लहर भारत के साथ-साथ दुनिया के बाकी हिस्सों में कहर ढा रही थी. फाइजर और मॉडर्ना के टीके खरीदने के लिए सरकार पर भारी दबाव बनाया जा रहा था, जबकि विदेशी निर्माताओं ने टीके की प्रत्येक खुराक के लिए $30 की पेशकश की थी. एक सूत्र ने कहा, ‘सरकार जानती थी कि वह इतने महंगे टीकों को प्रत्येक भारतीय को नहीं दे पाएगी.’ लेकिन जिस चीज ने भारत को ज्यादा परेशान किया वह थी उन टीकों की स्थिति.
‘वे (मॉर्डना और फाइजर) चाहते थे कि हम एक सॉवरेन गारंटी दें, जिसका मतलब यह था कि जिस वैक्सीन को -70 डिग्री सेल्सियस स्टोरेज की आवश्यकता है, अमेरिका से निर्यात किया जाना है, अगर कोल्ड चेन में कोई दिक्कत हो जाती है (जो वैक्सीन को बेकार कर देता है), तो कंपनी की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी. उनकी शर्त थी कि अगर किसी को वैक्सीन लगने के बाद कोई साइड इफेक्ट हुआ और वह मुकदमा करने चला तो ये कंपनियां कोई जिम्मेदारी नहीं लेंगी, बल्कि इसकी जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ भारत सरकार की होगी.’