भारत में राष्ट्रपति चुनाव, भले ही आम चुनावों की तरह चर्चा में नहीं रहता है, लेकिन अतीत में कई बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता, करीबी मुकाबले, वाकओवर और अपसेट का हिस्सा रहा है. राजनीतिक रूप से 1969 का राष्ट्रपति चुनाव काफी आकर्षक रहा था, जिसके कारण तत्कालीन शक्तिशाली सत्तारूढ़ कांग्रेस में विभाजन हुआ था. इसी तरह 1997 के राष्ट्रपति चुनाव में जब मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने सत्तारूढ़ गठबंधन के उम्मीदवार का समर्थन किया, तो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन को मैदान में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
पिछला राष्ट्रपति चुनाव 2017 में हुआ था. विपक्ष ने राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के खिलाफ पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को मैदान में उतारा था. उन्हें समाजवादी पार्टी और बसपा सहित 17 विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त था. हैरानी की बात यह रही कि तब विपक्षी खेमे में मौजूद जद (यू) ने अपोजिशन कैंडीडेट का साथ छोड़ दिया और राजग उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को अपना समर्थन दिया. कोविंद को जहां 7,02,044 वोट मिले, वहीं कुमार को 3,67,314 वोट मिले. इस तरह रामनाथ कोविंद 65.65 फीसदी वोट के साथ देश के 14वें राष्ट्रपति बने.
2012 में, यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी 7,13,763 (69 प्रतिशत) वोट मूल्य के साथ भाजपा के पीए संगमा को पछाड़ते हुए भारत के 13वें राष्ट्रपति बने. संगमा को 3,15,987 वोट मूल्य के साथ 30.7 प्रतिशत वोट मिले थे.
2007 में, यूपीए-वाम उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल ने भाजपा के भैरों सिंह शेखावत को 3,06,810 मतों से हराकर देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनी थीं. उस समय एनडीए के घटक दल शिवसेना ने प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया था, जो महाराष्ट्र से थीं. पाटिल को जहां 6,38,116 वोट मिले, वहीं शेखावत को 3,31,306 वोट मिले. तब निर्वाचक मंडल की ताकत 9,69,422 वोटों की थी.
2002 में, कांग्रेस और अधिकांश विपक्षी दलों ने भाजपा की पसंद प्रसिद्ध वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम का समर्थन करने का फैसला किया. वाम दल हालांकि उनके साथ नहीं आए और उन्होंने कैप्टन लक्ष्मी सहगल को मैदान में उतारा. यह एकतरफा मुकाबला था. कलाम को कुल 10,30,250 मतों में से 9,22,884 मत मिले, जबकि सहगल को 1,07,366 मत मिले.
1992 में, कांग्रेस के शंकर दयाल शर्मा भी आराम से जीते. विपक्ष ने तब अनुभवी सांसद और लोकसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल को मैदान में उतारा था. जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल एक ईसाई और आदिवासी थे. वह नॉर्वे और बर्मा में पूर्व भारतीय राजदूत के रूप में काम कर चुके थे. उनके ही नेतृत्व में हिल स्टेट मूवमेंट चला था, जिसकी परिणति मेघालय का अलग राज्य बनने के रूप में हुई थी. पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने स्वेल की उम्मीदवारी को आगे बढ़ाया और भाजपा ने उनका समर्थन किया था. शर्मा को जहां 6,75,804 वोट मिले, वहीं स्वेल को 3,46,485 वोट मिले. दो अन्य लोग मैदान में थे- राम जेठमलानी, जिन्हें 2,704 वोट मिले और प्रसिद्ध काका जोगिंदर सिंह उर्फ धरती-पकड़, जिन्हें 1,135 वोट मिले. काका जोगिंदर सिंह, जिनका 1998 में निधन हो गया, अपने जीवनकाल में 300 से अधिक चुनाव लड़े और उन्हें हर बार हार मिली.
1987 में, वामपंथी दलों ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति आर वेंकटरमन के खिलाफ कानूनी दिग्गज और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीआर कृष्ण अय्यर को मैदान में उतारा. वेंकटरमन के लिए यह एक आसान जीत थी, जिन्हें अय्यर 2,81,550 के मुकाबले 7,40,148 वोट मिले. तीसरे बिहार से निर्दलीय प्रत्याशी मिथिलेश कुमार को मात्र 2,223 वोट मिले. यह राष्ट्रपति चुनाव राजनीतिक रूप से दिलचस्प हो गया था, क्योंकि निवर्तमान अध्यक्ष ज्ञानी जैल सिंह, जिनके तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ समीकरण और संबंध काफी निचले स्तर पर पहुंच गए थे, को कुछ कांग्रेसी असंतुष्टों और लोक दल (बी) के देवी लाल द्वारा एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति लड़ने के लिए प्रेरित किया गया था. देवी लाल की पार्टी लोक दल (बी) ने हरियाणा में चुनाव जीता था. लेकिन ज्ञानी जैल सिंह इस राजनीतिक अखाड़े में नहीं उतरे थे.
1982 में, नौ विपक्षी दलों ने कांग्रेस के ज्ञानी जैल सिंह के खिलाफ आपातकाल के योद्धा जज एचआर खन्ना को मैदान में उतारा. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, खन्ना ने 1977 में भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति एमएच बेग की नियुक्ति के विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. इस घटना के एक साल पहले न्यायमूर्ति एचआर खन्ना तक सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने बहुमत वाले न्यायाधीशों से असहमति जताई थी कि अनुच्छेद 21 को आपातकाल की घोषणा से निलंबित किया जा सकता है. इस राष्ट्रपति चुनाव में ज्ञानी जैल सिंह को 7,54,113 वोट मिले, जबकि एचआर खन्ना को 2,82,685 वोट मिले थे.