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राष्ट्रपति चुनाव: इस बार क्यों घटेगी सांसदों की वोट वैल्यू, क्यों होती है विधायकों से अलग

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देश के अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 24 जुलाई को अपना 05 साल का टर्म पूरा कर लेंगे. अगले दिन अगले राष्ट्रपति शपथ लेंगे. जून और जुलाई के महीने में देशवासी 15वें राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया को तेजी से चलते हुए देखेंगे. इस चुनाव में आम जनता वोट नहीं डालती, बल्कि सभी राज्यों के विधायक और लोकसभा-राज्यसभा के सदस्य वोट डालते हैं. इनके मतों के जरिए नया राष्ट्रपति चुना जाता है.

ये भी जानकारी सामने आ रही है कि इस बार चुनाव में सांसदों के मत का मूल्य घट सकता है. इस बार राष्ट्रपति चुनाव में एक सांसद के मत का मूल्य 708 से घटकर 700 रह जाने की उम्मीद है. हालांकि हर राज्य में सांसद और विधायक जब राष्ट्रपति चुनावों के लिए अपने वोट का इस्तेमाल करते हैं तो इसकी वोट वैल्यू अलग होती है. इसमें हर वोट का वजन अलग-अलग अनुपात में माना जाता है. आइए जानते हैं कि इस चुनाव में मतदान का गणित क्‍या होता है.

राष्ट्रपति को चुनने के लिए लोकसभा में 543 और राज्यसभा में 233 सदस्य हैं. हालांकि लोकसभा में 03 और राज्यसभा में फिलहाल 16 जगहें खाली हैं, लेकिन जुलाई में जब राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग होगी तब ये सीटें उपचुनाव और राज्य सभा के लिए होने वाले चुनाव के जरिए भर चुकी होंगी. इसके अलावा देश की सभी विधानसभाओं के 4120 सदस्य भी राष्ट्रपति के चुनाव में मतदान करेंगे. इनमें दिल्ली और पुडुचेरी के विधायक भी शामिल हैं.

लोकसभा और राज्यसभा में किसे नहीं होता वोट पावर

वैसे तो राज्यसभा में सदस्य संख्या 245 होती है, लेकिन 12 मनोनीत सदस्य इस चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकते. उसी तरह लोकसभा में भी 02 मनोनीत एंग्लो इंडियन सदस्य इस चुनाव में शिरकत नहीं कर पाते.
क्यों घट सकता है सांसदों के मत का मूल्य

राष्ट्रपति चुनाव में सांसदों के मत का मूल्य कम होने के पीछे का कारण जम्मू-कश्मीर में विधान सभा का गठन नहीं होना है. राष्ट्रपति चुनाव में एक सांसद के मत का मूल्य दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर समेत अन्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की विधान सभाओं के लिए निर्वाचित सदस्यों की संख्या पर आधारित होता है.

पहले भी ऐसा हो चुका है!

ये पहली बार नहीं है कि किसी विधान सभा के सदस्य राष्ट्रपति चुनाव में भाग नहीं ले पाएंगे. इससे पहले 1974 में 182 सदस्यीय गुजरात विधान सभा को नवनिर्माण आंदोलन के बाद मार्च में भंग कर दिया गया था. तब राष्ट्रपति चुनाव से पहले इसका गठन नहीं हो पाया था. उस चुनाव में फखरुद्दीन अली अहमद राष्ट्रपति चुने गए थे. वैसे जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व राष्ट्रपति चुनाव में देखने को मिलेगा, क्योंकि इसके लोकसभा सदस्य चुनाव में अपने वोट का प्रयोग कर सकेंगे.

हर राज्य के वोटों की कीमत में अंतर

मतदाता सूची में हर सांसद और विधायक के वोट की ताकत अलग-अलग होती है. इसके साथ ही हर राज्य के सांसद और विधायक के वोटों की कीमत में भी अंतर होता है. सांसद या विधायक के वोट की कीमत उसके राज्य की 1971 की आबादी के हिसाब से तय किया जाता है.
एक विधायक के वोट की कीमत का निर्धारण

1971 में विधायक के राज्य की आबादी/राज्य के विधायकों की संख्या गुणा 1000 से होता है.

एक सांसद के वोट की कीमत का निर्धारण-

राज्य के विधायकों के वोटों का मूल्य/776 (सांसदों की संख्या) से होता है.
कब कितना था सांसदों के मत का मूल्य

1997 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद से एक सांसद के मत का मूल्य 708 निर्धारित किया गया है. 1952 में पहले राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक सांसद के मत का मूल्य 494 था, जो 1957 के राष्ट्रपति चुनाव में मामूली रूप से बढ़कर 496 हो गया.

इसके बाद 1962 में यह 493 और 1967 व 1969 में 576 रहा. बता दें कि तीन मई 1969 को राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के निधन के कारण 1969 में राष्ट्रपति चुनाव हुआ था. इसके बाद 1974 के राष्ट्रपति चुनाव में एक सांसद के मत का मूल्य 723 निर्धारित किया गया था, जबकि 1977 से 1992 तक के राष्ट्रपति चुनावों के लिए एक सांसद के मत का मूल्य 702 हो गया.

इतनी आसान भी नहीं है मतगणना प्रक्रिया

राष्ट्रपति चुनाव में हर मतदाता एक ही वोट देता है. वो हर उम्मीदवार को लेकर अपनी प्राथमिकता बता सकता है. हर वोट की गिनती के लिए कम से कम एक उम्मीदवार के नाम का समर्थन जरूरी होता है. किसी भी प्रत्याशी को जीतने के लिए तयशुदा कोटे के वोट हासिल करने होते हैं. अगर पहले दौर में कोई नहीं जीतता, तो सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को चुनाव मैदान से बाहर कर दिया जाता है.

फिर उसके हिस्से के वोट, दूसरी प्राथमिकता वाले प्रत्याशी के खाते में डाल दिए जाते हैं. इसके बाद भी कोई नहीं जीतता, तो यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती है, जब तक कोई उम्मीदवार जीत के लिए तय कोटे के बराबर वोट हासिल नहीं कर लेता या एक-एक कर के सारे उम्मीदवार मुकाबले से बाहर हो जाएं और सिर्फ एक प्रत्याशी बचे.

कोटे का निर्धारण कैसे होता है?

राष्ट्रपति चुनाव के कुल मतदाताओं के वोटों के मूल्य को दो से भाग देकर उसमें एक जोड़ा जाता है. इसी से जीत के लिए कोटा तय होता है.

क्या हुआ था पिछले चुनाव में

पिछले चुनाव में रामनाथ कोविंद एनडीए के प्रत्याशी थे जबकि मीरा कुमार यूपीए की. उसमें कोविंद भारी मतों से जीते थे. उन्हें 7,02,044 वैल्यू मत मिले थे, जबकि मीरा कुमार को 3,67,314. मत फीसदी के हिसाब से. देखें तो कोविंद को जहां 65.65 फीसदी वोट मिले तो प्रतिद्वंद्वी को 34,35 फीसदी. ज्यादातर राज्यों से कोविंद को जीत मिली.

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