पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डॉलर की उपेक्षा नहीं करने की सलाह देकर एक बार फिर इस अमेरिकी करंसी को चर्चा में ला दिया है. दुनिया की अर्थव्यवस्था में मजबूत स्थिति रखने वाला रूस, यूक्रेन पर हमले के कारण लगाए गए प्रतिबंध के कारण विदेशी कर्ज मामले में डिफॉल्ट कर चुका है. पिछले दिनों क्रेडिट रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने कहा था कि रूस अपने विदेशी डेट पर डिफॉल्ट कर चुका है, क्योंकि उसने बांडधारकों को 4 अप्रैल, 2022 को मेच्योर होने वाले बांड पर डॉलर के बदले रूबल में पेमेंट करने की पेशकश की थी.
भारत के संदर्भ में भी बात करें, तो कच्चे तेल या अन्य रॉ मेटीरियल का आयात डॉलर में करने या बाजार से विदेशी संस्थागत निवेशकों के पैसे निकालने के कारण, इसका विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है. इससे आर्थिक और राजनीतिक जगत में चिंता की लकीरें खिंचतीं जा रही हैं.
आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका और पाकिस्तान भी डॉलर की ताकत से परिचय करवा चुका है. सवाल उठता है कि आर्थिक और सामरिक रूप से दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका की करंसी यानी डॉलर इतना प्रभावशाली या मजबूत क्यों है. साथ ही, दुनिया में यह करंसी क्यों रिवर्ज करंसी के रूप में रखी जाती है. जानकारों के अनुसार, दुनिया को कर्ज का भुगतान करने के लिए अमेरिका की क्षमता में जो विश्वास है, वह वैश्विक व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए डॉलर को सबसे अधिक स्थापित करंसी के रूप में रखता है.