थोड़ी राहत के बाद, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) फिर शेयर बेच कर भागने लगे हैं. लिहाजा बाजार में अस्थिरता और बढ़ गई है. पिछले छह कारोबारी सत्रों में एफपीआई ने 12,000 करोड़ रुपए से अधिक की इक्विटी बेची. इसकी मुख्य वजह रही भारत की बढ़ती मुद्रास्फीति.
विश्लेषकों ने कहा कि मार्च की मुद्रास्फीति दर 17 महीने के उच्चतम स्तर पर एफपीआई के मूड को खराब कर चुकी है. भारत में बढ़ती मुद्रास्फीति और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में वृद्धि व कमी की आशंका हावी है. साथ ही रूस-यूक्रेन संकट ने और स्थिति को जटिल बना दिया है. लिहाजा जोखिम भरे उभरते बाजारों से पूंजी की निकासी तेजी से बढ़ी है.
भारत की मुद्रास्फीति से डर बढ़ा
बाजार एक्सपर्ट के मुताबिक, 6.95% पर भारत की मुद्रास्फीति मार्केट सेंटिमेंट को कमजोर करने वाली थी. अमेरिकी फेड के रूख से भी बिकवाली बढ़ी है. वहीं दूसरी तरफ, रूस के आसपास भू-राजनीतिक तनाव बढ़ रहा है. स्वीडन और फिनलैंड को नाटो सदस्यता के खिलाफ रूस चेतावनी दे रहा है.
तमाम बाजार जानकारों का मानना है कि एफपीआई की बिकवाली जारी रह सकती है. हालांकि मार्केट एक्सपर्ट का कहना है कि विदेशी निवेशक जितनी बिकवाली कर रहे घरेलू निवेशक उतनी खरीदारी करके इस दबाव को झेल ले रहे हैं. घरेलू निवेश म्यूचुअल फंड के जरिए भारी खरीदारी कर रहे हैं.
पिछले छह माह में लगातार बिकवाली
इससे पहले अक्टूबर, 2021 से मार्च, 2022 तक छह माह में एफपीआई ने शेयरों से शुद्ध रूप से 1.48 लाख करोड़ रुपये निकाले थे. मार्च तक विदेशी निवेशकों ने लगातार 6 महीने सिर्फ बिकवाली ही की है. अप्रैल के शुरुआती समय में थोड़ी खरीदारी लौटी थी लेकिन दो हफ्ते बाद ही फिर से बिकवाली चालू हो गई.
विशेषज्ञों का कहना है कि रूस-यूक्रेन तनाव की वजह से वैश्विक स्तर पर वृहद आर्थिक स्थिति और मुद्रास्फीतिक दबाव की वजह से विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से निकासी कर रहे हैं. इससे पहले अक्टूबर, 2021 से मार्च, 2022 तक छह माह में एफपीआई ने शेयरों से शुद्ध रूप से 1.48 लाख करोड़ रुपये निकाले थे.