जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी (intergovernmental Panel on Climate change-IPCC) ने भारत के उस रुख का समर्थन किया है जिसमें भारत ने विकासशील देशों के लिए जलवायु परिवर्तन को लेकर वित्तीय व्यवस्था में समानता लाने की जरूरत पर बल दिया है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इसका स्वागत करते हुए कहा है कि आईपीसीसी की रिपोर्ट वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में तत्काल कमी की आवश्यकता पर बल देती है. इसके साथ ही आईपीसीसी ने भारत की उस मान्यता को भी सही ठहराया है जिसमें भारत ने सतत विकास और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर समान रुख अपनाए जाने की वकालत की है. भूपेंद्र यादवा ने कहा, भारत आईपीसीसी के इस रुख का समर्थन करता है.
भूपेंद्र यादव ने कहा,हालांकि विकासशील देशों के लिए कार्बन बजट को सुसंगत करना आज भी सबसे महत्वपूर्ण सवाल बना हुआ है. दरअसल, भारत विकासशील देशों के लिए कार्बन बजट में अमीर देशों से सहायता चाहता है. क्योंकि विकासशील देशों के पास जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उस तरह की तकनीकी नहीं है और न ही इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था है. इसलिए भारत चाहता है कि जो अमीर देश कार्बन उत्सर्जन ज्यादा करता है, वह विकासशील देशों को मदद दें. आईपीसीसी की रिपोर्ट में भारत के इस रुख का समर्थन किया गया है.
विकासशील देशों के सामने चुनौती
विकासशील देशों के लिए पर्यावरण के मुद्दे को सुलझाने के लिए पैसे की कमी सबसे बड़ी चुनौती है. यही कारण है विकासशील देश जलवायु परिवर्तन को प्रबंधित करने के लिए नवोन्मेष और तकनीकी में पिछड़ जाता है जिसके कारण वैश्विक तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है. संयुक्त राष्ट्र की इकाई आईपीसीसी ने अपनी ताजा रिपोर्ट में आर्थिक मोर्चे पर विकासशील देशों की इन मजबूरियों को रेखांकित किया है. आईपीसीसी की रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई कि विकासशील देश 2020 तक जलवायु परिवर्तन के लिए 100 अरब डॉलर वित्त की व्यवस्था करने में असमर्थ रहा. हालांकि इन देशों ने शुरुआत में जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए इस तरह का वादा किया था.