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‘नाटो विस्तार ने भड़काया यूक्रेन युद्ध’, चीन ने क्यों लगाया अमेरिका पर ये आरोप

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रूस यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) के चलते अंतरराष्ट्रीय राजनीति गर्माई हुई है. दुनिया के देशों को अपने अपने पक्ष में करने के लिए रूस और अमेरिका (USA) जोर लगा रहे हैं. इसमें अब भारत की भूमिका सबसे अहम बन गई है. फिलहाल भारत का औपचारिक रवैया तटस्थ ही है, फिर भी अमेरिका भारत को पूरी तरह अपनी ओर मिलाने की कोशिश रहा है और रूस भारत का साथ चाहता है. चीन (China) भी अमेरिका के साथ नहीं जाएगा, लेकिन वह अभी खुल कर रूस के साथ नहीं है. अब चीन ने अमेरिका पर आरोप लगाया है कि उसी ने यूक्रेन में युद्ध को भड़काया है.

खत्म कर देना चाहिए था नाटो को
चीन ने सीधे सीधे नाटो की भूमिका पर ही सवाल खड़ा कर अमेरिका को कठघरे में लाने का प्रयास किया है. उसका कहना है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद ही नाटो को खत्म कर देना चाहिए था. चीन की अमेरिका से खिलाफत छिपी नहीं हैं. पिछले कुछ सालों में चीन ने आर्थिक महाशक्ति के तौर पर अमेरिका को खुली चुनौती दी है. अमेरिका पर भी चीन के बढ़ते प्रभाव का असर देखा जा रहा है.

नाटो का विस्तार किया
शुक्रवार को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा, “ युक्रेन संकट में एक गुनहगार और प्रमुख भड़काने वाला होने के नाते अमेरिका ने 1999 के बाद के दो दशकों तक अपनी अगुआई में नाटा का पांच चरणों में पूर्व की ओर विस्तार किया” नाटो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शुरू हुए शीत युद्ध में बनाया गया सैन्य संगठन है जिसका मकसद सोवियत संघ के प्रभाव को यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में बढ़ने से रोकना था.

16 से 30 की कर दी गई नाटो सदस्यों की संख्या
झाओ ने कहा कि नाटो के सदस्यों की संख्या 16 से 30 करते हुए वे एक हजार किलोमीटर पूर्व की ओर रूस के नजदीक आ गए और रूस को पीछे धकेलने का प्रयास किया. सोवियत संघ के विघटन के बाद से ही नाटो को खत्म करने के मांग उठ रही थी जबकि उस समय विघटन का शिकार रूस कुछ कहने की स्थिति नहीं था.

क्या है चीन का रुख
चीन का कहन है कि वह इस विवाद में किसी का भी पक्ष नहीं ले रहा है. उनसे रूस के साथ नो लिमिट्स यानी बिना किसी हद की साझेदारी का ऐलान किया है. उसने रूसी हमले की निंदा करने से इनकार किया है, रूस के खिलाफ लगे प्रतिबंधों का विरोध किया है. इसके साथ इस विवाद के दौरान रूस जानकारी पर नियमित रूप से रूस की ओर से दी जाने वाली सूचनाओं का समर्थन किया है.

क्या भारत से है संबंध इस बयान का
चीन का यह आरोप ऐसे समय में आया है जब भारत की यात्रा के दौरान अमेरिका के उप राष्ट्रीय सलाहकार दिलीप सिंह ने भारत को चेताया था कि भारत के साथ चीन के सीमा विवाद पर रूस भारत का साथ नहीं देगा. चीन ने सीधे तौर पर इसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन भारत ने अमेरिका के कड़े रुख का विरोध करते अमेरिकी बयान के उस हिस्से पर जवाब दिया कि रूस पर पाबंदियों के खिलाफ जाने के नतीजे होंगे.

और यूरोपीय संघ
झाओ का बयान तब आया है जब चीनी और यूरोपीय संघ के नेता एक वर्चुअल सम्मेलन में भाग ले रहे थे जिसमें यूक्रेन चर्चा का प्रमुख विषय होना था. इस दौरान यूरोपीय संघ ने कहा कि वे चीन की ओर से किसी प्रतिबद्धता की उम्मीद कर रहे हैं जिससे पाबंदियों का विरोध ना हो जिससे लड़ाई रोकने के प्रयासों को झटना ना लगे.

इस समय रूस यूक्रेन युद्ध के दो पक्ष की बात करें तो यूक्रेन के साथ पश्चिमी देश और अमेरिका है. तो वहीं रूस के साथ बहुत कम देश हैं. चीन रूस के समर्थन में हैं क्योंकि अमेरिका चीन को अपने साथ नहीं देखना चाहेगा. ना ही चीन किसी भी कीमत पर ऐसा करना चाहेगा. रूस और चीन की दोस्ती चरम पर है. लेकिन चीन यह दर्शाना नहीं चाहता है कि वह युद्ध का समर्थक है. वहीं भारत का तटस्थ रवैया और रूस के साथ द्विपक्षीय संबंध अमेरिका को खटक रहे हैं. वह रूस को किसी भी तरह का सहारा सहन नहीं कर सकता है. इस तरह यह युद्ध अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के अखाड़े में जोरों से चल रहा है.

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