आरबीआई द्वारा जारी 31 मार्च को जारी आंकड़ों के अनुसार, ऊंचे आयात भुगतान के कारण अक्टूबर-दिसंबर 2021 में भारत का चालू खाता घाटा बढ़कर 23 अरब डॉलर हो गया जो जुलाई-सितंबर 2021 में 9.9 बिलियन डॉलर था। वहीं, 2020 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में चालू खाता घाटा 2.2 अरब डॉलर था. यह अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के लिए 9 साल का सर्वाधिक चालू खाता घाटा है.
आरबीआई के मुताबिक, इससे पहले 2012 की अंतिम तिमाही में चालू खाता 31.8 अरब डॉलर दर्ज हुआ था. प्रतिशत के संदर्भ में देखा जाए तो चालू खाता घाटा अक्टूबर-दिसंबर 2021 में सकल घरेलू उत्पाद का 2.7 प्रतिशत है जबकि समीक्षाधीन तिमाही से पिछली तिमाही में यह 1.3 फीसदी था.
वित्तीय घाटा बढ़ने का कारण
पिछली तिमाही में चालू खाते के घाटे में वृद्धि 2021 की जुलाई-सितंबर तिमाही में आयातित सामग्री के 111.8 अरब डॉलर से बढ़कर 169.4 अरब डॉलर होने व वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के कारण हुई. इसके परिणामस्वरूप एक तिमाही में अब तक का सर्वाधिक 60.4 अरब डॉलर घाटा दर्ज हुआ है.
सेवा क्षेत्र में प्रदर्शन बेहतर रहा
आरबीआई ने कहा कि सेवाओं क्षेत्र में नेट रिसीट्स में क्रमिक रूप से और साल-दर-साल आधार पर वृद्धि हुई है. बैंक के अनुसार, इसके पीछे का कारण कंप्यूटर और व्यावसायिक सेवाओं के शुद्ध निर्यात का लगातार मज़बूत होना है. जुलाई-सितंबर 2021 में जो सर्विस ट्रेड सरप्लस 25.6 अरब डॉलर था वह अक्टूबर-दिसंबर 2021 तिमाही में बढ़कर 27.8 अरब डॉलर हो गया. नवीनतम तिमाही नतीजों में वित्त वर्ष 2021-22 के पहले नौ महीनों में चालू खाते का घाटा 26.5 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है जबकि वित्त वर्ष 2020-21 की इसी अवधि में यह 32.1 बिलियन डॉलर के सरप्लस में था.
घाटा कम होने की उम्मीद
आईसीआरए की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर का मानना है कि यह घाटा कम हो जाएगा. उन्होंने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि चालू खाता घाटा 2021-22 की चौथी तिमाही में कुछ हद तक घटकर लगभग 17-21 अरब डॉलर हो जाएगा क्योंकि तीसरी लहर अस्थायी रूप से कुछ आयातों को कम किया है. हांलाकि, वह यह भी कहती हैं कि अगर रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण भारत में आने वाले कच्चे तेल की कीमत वित्त वर्ष 23 में लगभग 105 डॉलर प्रति बैरल हो जाती है तो अगले साल चालू खाता घाटा 95 अरब डॉलर तक बढ़ने की आशंका है.
चालू खाता घाटा क्या होता है?
चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) किसी देश के व्यापार की माप है जहां आयात होने वाली वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य उसके द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं और सर्विसेज के मूल्य से ज्यादा हो जाता है.