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अब आप बाहर से ड्रोन्स नहीं मंगवा पाएंगे, सरकार चाहती है कि ‘मेड इन इंडिया’ की ही हो बिक्री

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वोकल फॉर लोकल जैसे नारों को देने वाली वर्तमान सरकार स्वदेशी ब्रांड और स्थानीय ब्रांड और निर्माताओ को बढ़ावा देने के लिए अब देश में ड्रोन के आयात पर प्रतिबंध लगा रही है. विदेश व्यापार महानिदेशालय की अधिसूचना के मुताबिक, 9 फरवरी, 2022 से आयात पर प्रतिबंध लागू हो गया. ‘HS Code 8806’ के तहत आने वाली ड्रोन की आयात नीति में पूरी तरह से निर्मित, पूरी तरह नॉक्ड डाउन, और अर्ध नॉक्ड डाउन प्रतिबंधित होंगे.

कुछ चीजों में अपवाद भी रहेगा

रक्षा एवं सुरक्षा के उद्देश्य से शोध एवं विकास के लिए ड्रोन मंगाना अपवाद रहेगा. इसमें सरकारी संस्थान, शिक्षण संस्थान जो केंद्रीय या राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त हैं, सरकारी शोध एवं विकास संस्थान शामिल होंगे. इनके लिए विदेश व्यापार महानिदेशालय संबंधित मंत्रालय को साथ परामर्श करके आयात के लिए अनुमति जारी करेगा.

नीति के तहत ड्रोन के कंपोनेंट यानी हिस्से मंगाना मुफ्त होगा. यह नीति तत्काल प्रभाव से लागू कर दी जाएगी. इससे पहले 2021 में केंद्र ने ड्रोन और उसके कंपोनेंट निर्माण के लिए पीएलआई योजना शुरू की थी. आगे चलकर मंत्रालय ने सिंतबर 2021 में ड्रोन एयरस्पेस मैप और पीएलआई योजना के तहत यूटीएम नीती ढांचा अक्टूबर 2021 में लागू किया. इसके अलावा हाल ही में ड्रोन प्रमाणन योजना और सिंगल विंडो डिजिटल स्काइ प्लेटफॉर्म लागू किया गया है. यह योजना अगले तीन सालों में 120 करोड़ रू की प्रोत्साहन राशि प्रदान की है. आने वाले तीन सालों में इस क्षेत्र में 5000 करोड़ के निवेश की उम्मीद है. बीते कुछ सालों में ही स्वदेशी ड्रोन ने देश ही नहीं विदेशों में भी शोहरत हासिल की है.

गरुण स्ट्रिंगिंग ड्रोन की उपयोगिता

हाल ही में चैन्नई के गरुड़ एयरोस्पेस का बनाया हुआ. स्ट्रिंगिग ड्रोन का इस्तेमाल भारतीय सेना और एनडीआरएफ ने केरल के पलक्कड में दो दिने से पहाड़ की दरार में फंसे ट्रेकर को निकालने में किया था.
इसके अलावा गरुण स्ट्रिंगिंग ड्रोन उत्तराखंड में चमोली ग्लेशियर आपदा में भी तैनात किया गया था और उसने एनडीआरएफ के अधिकारियों की संचार स्थापित करने में मदद की थी. यही नहीं स्ट्रिंगिंग ड्रोन 15 किलो तक का वजन ले जाने में भी सक्षम होता है इसलिए इसका उपयोग आपदा ग्रस्त जगहों पर भोजन, पानी और ज़रूरी सामान के लिए भी किया जाता है.

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