Home छत्तीसगढ़ आज का लेखन-गद्य रचना विधा- आलेख शीर्षक-धनवान

आज का लेखन-गद्य रचना विधा- आलेख शीर्षक-धनवान

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धनवान होना, क्या कोई अवस्था है, मन का विकार है या मन की शक्ति, वहम है, सत्य है या फिर कल्पना मात्र? मेरे विचार से धन कोई दृव्य नहीं कि इसे पाया और हो गए धनवान। गर्भ में जब शिशु आता है तब से लेकर मृत्यु पर्यंत वह धनवान ही होता है। धीरे-धीरे वह पनपता है फिर माँ के गर्भ से विलग भौतिक जगत से उसका संबंध जुड़ता है। उसके मन और मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार के विचारों का प्रस्फुटन होता है। अपने सदाचारी व अनाचारी कर्मों से वह जगत में विख्यात होने लगता है। सदाचारी व्यक्ति के धन में हमेशा इज़ाफ़ा होता रहता है वहीं अनाचारी भौतिकता के उपभोग में चूर स्वयं को धनवान मान बैठता है, जबकि वह तो दुनिया का सबसे कंगाल प्राणी होता है।
अतः मनुष्य को चाहिए कि वह सर्वप्रथम यह स्वीकार करे कि ईश्वर ने उसे पहले से ही धनसंपन्न बनाकर पृथ्वी पर भेजा है फिर वह किस धन की तलाश में और क्यों अपने निर्विकार मन को विकारों से भर देता है। जिन वस्तुओं को वह धन समझता है, वह तो उसके मन का वहम मात्र है, कोई विकार है चन्द्रमा की कलाओं की तरह कभी न खत्म होने वाला एक रोग है।
प्रसन्न हों कि आज हम सभी स्वस्थ हैं, हमारा मस्तिष्क शुद्ध सात्विक विचारों को पोषित करता है। अतः हम दुनिया के सबसे धनवान व्यक्ति हैं।

भावना प्रीतिश तायवाडे

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