साल 2021 के साथ भारत दुनिया में सबसे ताकतवर अंतरराष्ट्रीय मंच यानी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का भी सदस्य बन जाएगा. जून 2020 में भारी बहुमत से जीत दर्ज करने के बाद 1 जनवरी से बतौर अस्थाई सदस्य भारत की यह 8वीं पारी शुरू होगी.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बतौर अस्थाई सदस्य भारत का दो साल का कार्यकाल ऐसे वक्त शुरू हो रही है जब कोरोना महामारी से लेकर अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा,शांति स्थापना समेत कई चुनौतियां खड़ी हैं. साथ ही कोविड19 संकट के दौरान यूएन समेत अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में व्यापक सुधारों की मांग भी काफी मुखर हो रही है. खुद भारत भी सुरक्षा परिषद समेत प्रमुख संस्थाओं में बदलावों का बड़ा पक्षधर रहा है.
भारत के सुरक्षा परिषद में औपचारिक तौर पर शामिल होने से पहले नई प्राथमिकताओं का एक खाका भी पेश किया है. विदेश मंत्रालय के मुताबिक मौजूदा वक्त में शांति व सुरक्षा से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय चुनैतियों से निपटने के लिए एक समेकित प्रयास की ज़रूरत है जिसमें राष्ट्रीय विकल्पों और अंतरराष्ट्रीय प्राथमिकताओं के बीच बेहतर तालमेल हो सके.
भारत की नज़र में अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा मुख्यतः संवाद, सहयोग, आपसी सम्मान और नियम-क़ानूनों के प्रति सम्मान से ही संचालित है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे 5S यानी सम्मान, संवाद, सहयोग, शांति और समृद्धि का सूत्र करार दिया है.
भारत कर रहा है सुधार की मांग
भारत संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों के कामकाज में भी सुधारों की मांग करता रहा है ताकि इनकी व्यवस्था को अधिक पेशेवर और स्पष्ट बनाया जा सके. गौरतलब है कि भारत संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में सर्वाधिक सैनिक देने वाला देश है.
प्रधानमंत्री के मुताबिक कोविड19 के बाद परिवर्तित परिदृश्य में तेजी से बदले सुरक्षा हालात, पुरानी चुनौतियों की मौजूदगी और अधिक जटिल कठिनाइयों का उभरना, इन सभी के बीच ज़रूरत है कि शांति स्थापना के लिए किए जा रहे प्रयास ज़्यादा सहयोगात्मक, समावेशी, प्रभावी और स्थाई हों.
आतंकवाद के खिलाफ लगातार आवाज़ उठाता रहा भारत सुरक्षा परिषद में अस्थाई सदस्य के तौर पर अधिक सक्रिय भूमिका निभाने का भी पहले ही संकेत दे चुका है. विदेश मंत्रालय के मुताबिक सुरक्षा परिषद सदस्य के तौर पर भारत का प्रयास होगा कि आतंकियों के हाथों सूचना, संचार और प्रौद्योगिकी पर रोकथाम का प्रभावी प्रयास किया जाए.
साथ ही अंतरराष्ट्रीय अपराध में लिप्त संगठनों और लोगों पर लगाम कसने के कारगर कोशिश हो. आतंक की आर्थिक रसद की रोकथाम से लेकर बहुपक्षीय तालमेल को ठीक करने के प्रयासों पर भी प्राथमिकता होगी.
भारत बड़े बहुमत से बना स्थाई सदस्य
भारत बड़े बहुमत के साथ 17 जून को हुए चुनाव में यूएन का अस्थाई सदस्य चुना गया. यूएन के 192 सदस्य देशों में से 184 ने भारत की दावेदारी को अपना वोट दिया था. इतना ही नहीं, करीब एक दशक बाद सुरक्षा परिषद में भारत की यह क्लीन स्लेट एंट्री थी क्योंकि उसके मुकाबले कोई दावेदार ही नहीं था. अगले दो साल यानी 2021 और 2022 में सुरक्षा परिषद की ताकतवर मेज पर बतौर अस्थाई सदस्य मौजूद होगा.
संयुक्त राष्ट्र संघ की सबसे ताकतवर हॉर्स शू टेबल पर भारत की मौजूदगी कई मायनों में अहम भी होगी. भारत भले ही अस्थाई सदस्य के तौर पर 15 सदस्यों वाली सुरक्षा परिषद में शामिल हो लेकिन 2022 तक के कार्यकाल में करीब दो बार भारत सुरक्षा परिषद की अगुवाई भी करेगा.
यानी अगस्त 2021 और नवंबर 2022 में भारत की अध्यक्षता संभव है. इसके अलावा सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्यों के रूप में भारत सबसे प्रभावशाली मुल्क के तौर पर भी मौजूद होगा. आकार और अंतरराष्ट्रीय दबदबे के चलते भारत जैसे देश की बात को सिरे से नजरअंदाज करना स्थाई सदस्यों के लिए भी संभव नहीं है.
इतना ही नहीं भारत के सुरक्षा परिषद की मेज पर पहुंचने के बाद चीन के लिए भी भारत के खिलाफ किसी मीटिंग को आयोजित करना या प्रस्ताव लाना जहां मुश्किल होगा. वहीं मसूद अजहर आतंकियों को यूएन सूची में डलवाने जैसी कोशिशों का रास्ता रोकना भी कठिन होगा. जानकारों के मुताबिक भारत यूं तो सुरक्षा परिषद की स्थाई सीट का मजबूत दावेदार है. मगर बाहर रहने की बजाए भीतर जाने का मौका अगर मिलता है तो उसे लेना चाहिए.
सुरक्षा परिषद में मौजूदगी से किसी भी देश की यूएन प्रणाली में दखल और दबदबे का दायरा बढ़ जाता है. सुरक्षा परिषद के ताजा कार्यकाल में भारत अस्थाई सदस्यों के ई-10 समूह का भी सबसे बड़ा मुल्क होगा. ऐसे में जानकारों के मुताबिक अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस के लिए भी भारत को साधना अहम होगा.
यूएन में 55 देशों वाले एशिया प्रशांत समूह ने पहले ही भारत को अपनी तरफ से नामित कर दिया था. भारत इससे पहले 1950 से लेकर अब तक सात बार सुरक्षा परिषद का सदस्य रह चुका है. पिछली बार 2011-12 में भारत इस मेज पर सदस्य के तौर पर मौजूद था. भारत दस साल के अंतराल पर अस्थाई सदस्यता का चुनाव लड़ता है. हालांकि भारत की ही तरह सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता की मांग कर रहा जापान जैसा जी-4 का देश प्रत्येक 5 साल में अस्थाई सदस्यता हासिल करता है.
अगले साल खत्म हो रहे जापान और दक्षिण अफ्रीका के कार्यकाल के बीच भारत सुरक्षा परिषद में जी-4 का अकेला नुमाइंदा होगा. महत्वपूर्ण है कि भारत समेत जी-4 मुल्क सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट पर दावेदारी के साथ इसके कामकाज में व्यापक सुधारों की मांग कर रहे हैं.