पूर्वी लद्दाख में चीन से लगते वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 5 मई यानी पिछले करीब आठ महीने जारी तनातनी के बीच भारत सरकार ने कहा कि भारत और चीन के बीच कूटनीतिक और सैन्य स्तरों पर बातचीत जारी रहेगी.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने गुरूवार को एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कहा- भारत और चीन के बीच चर्चा होने से एक दूसरे की स्थिति को समझने में मदद मिली. भारत और चीन के सीमा मामलों पर वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसल्टेशन एंड को-ऑर्डिनेशन की बैठक 18 दिसंबर को हुई थी.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आगे कहा- भारत, उज्बेकिस्तान और ईरान के बीच चाबहार पर बैठक का आयोजन भारत करेगा. हालांकि, इसकी तारीख का फैसला होना अभी बाकी है. अफगानिस्तान को एक प्रमुख हितधारक के तौर पर आमंत्रित किया जाएगा. थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे बुधवार को अचानक पूर्वी लद्दाख के उस रेचिन-ला दर्रे पर पहुंचे जिसे भारतीय सेना ने 29-30 अगस्त की रात को अपने अधिकार-क्षेत्र में किया था.
एलएसी यानि लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल पर बेहद ही सामरिक महत्व का ये दर्रा है जिससे टैंक, बीएमपी और सैनिकों का चीन की सीमा में दाखिल होना बेहद आसान है. इसके अलावा जनरल नरवणे ने सेना की ऑपरेशनल तैयारियों का जायज़ा तो लिया ही, वहां तैनात सैनिकों के साथ क्रिसमस भी मनाया. सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे बुधवार की सुबह लेह पहुंचे और चीन से सटी एलएसी की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने वाली फायर एंड फ्यूरी कोर (14वीं कोर) के मुख्यालय पहुंचकर ऑपरेशन्ल तैयारियों की समीक्षा की.
इस दौरान 14वीं कोर के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन भी मौजूद थे. वहां से कोर कमांडर के साथ जनरल नरवणे हेलीकॉप्टर से चुशूल के करीब रेचिन-ला दर्रा पहुंचे. रेचिन-ला दर्रे पर थलसेना प्रमुख ने वहां तैनात मैकेनाइज्ड-इफेंट्री और आर्मर्ड यानि टैंक पर तैनात सैनिकों से मुलाकात की. क्योंकि रेचिन ला दर्रे पर सेना की बीएमपी (आर्मर्ड कैरियर व्हीकल) और टैंक तैनात हैं. क्योंकि इस दर्रे से भारतीय सेना के टैंक और बीएमपी मशीन आसानी से चीन (तिब्बत) के रेचिन ग्रेजिंग लैंड में दाखिल हो सकती हैं. इसीलिए रेचिन ला दर्रा सामरिक तौर से बेहद महत्वपूर्ण है.
आपको बता दें कि 29-30 अगस्त की रात को भारतीय सेना ने कैलाश पर्वत श्रृंखला के रेचिन-ला दर्रे सहित गुरंग हिल, मगर हिल और मुखपरी को अपने अधिकार-क्षेत्र में कर लिया था. भारतीय सेना ने ये बड़ी कारवाई चीन की पीएलए सेना के पैंगोंग-त्सो लेक से सटे फिंगर 8 से फिंगर 4 तक पर कब्जे के बाद की थी.