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राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में भाग लेने बेलारूस, युगांडा, श्रीलंका और मालदीव देशों सहित 23 राज्यों के आदिवासी नृत्य दल पहुंचे छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में मिले अपनापन और देखभाल से प्रभावित हो रहे नर्तक दल

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रायपुर, 26/12/2019 :  भारत में छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर में 27 दिसम्बर से आयोजित हो रहे राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में भाग लेने बेलारूस, युगांडा, श्रीलंका और मालदीव देश सहित 23 राज्यों के आदिवासी नृत्य दल रायपुर पहुंच गये है। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में आंध्रप्रदेश के 40 कलाकार भाग लेंगे। ये कलाकार चार अलग-अलग दल में आंध्रप्रदेश के प्रसिद्ध पारंपरिक दिम्सा नृत्य, कोम्मू नृत्य, लंबाड़ा नृत्य और चेंचू नृत्य की प्रस्तुति देंगे, साथ ही उत्तराखण्ड, अरूणाचल प्रदेश, हिमांचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिसा, गुजरात, तेलंगाना, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, जम्मू, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडू आदि राज्यों के लोक कलाकार महोत्सव में भाग लेने रायपुर पहुंच चुके है। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में भाग लेकर बेलारूस के लोक नृत्य की छटा बिखेरने कलाकार पहुंच गए हैं। लगभग सात हजार किलोमीटर की दूरी तय कर 10 सदस्यीय कलाकार दल राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में भाग लेने पहली बार छत्तीसगढ़ पहुंचा है। उनके नृत्य दल ने कनाडा, ग्रीस, अल्जीरिया, इस्पेन, जर्मनी, इटली, रशिया सहित कई देशों में प्रस्तुति दी है। नृत्य दल की सदस्य सुश्री एलीसा ने बताया कि छत्तीसगढ़ की मेहमान नवाजी और यहां मिले अपनेपन और देखभाल से कलाकार बहुत प्रभावित हैं। बेलारूस और छत्तीसगढ़ की संस्कृति आवभगत में समान है, उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में भाग लेने के लिए उनका दल बहुत उत्साहित है। सुश्री एलीसा ने बताया कि छत्तीसगढ़ में वे राष्ट्रीय लोक नृत्य “लेवोनिखा” प्रस्तुत करेंगे। “लेवोनिखा” के माध्यम से दर्शक राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य समारोह में बेलारूस की सांस्कृतिक लोक कला को संगीत और नृत्य के माध्यम से देख सकेंगे। यह नृत्य प्रेम का प्रतीक है जो उत्सवए विवाह संस्कार में खुशी जाहिर करने के लिए किया जाता है। नृत्य प्रस्तुति के समय कलाकार एक विशेष कपड़ा हाथों में लिए रहते हैं। यह कपड़ा बेलेरूशियम लीनन से बनाया जाता है, जिसमें हाथ से कढ़ाई की जाती है। इसे विदाई के समय सुरक्षा और प्रेम के प्रतीक स्वरूप प्रियजनों को दिया जाता है। कपड़े में लाल रंग से गोलाई लिए आकृतियां बनाई जाती है। इसमें गोल आकृति जीवन चक्र और लाल रंग सुरक्षा का प्रतीक होता है। उन्होंने बताया कि उनके नृत्य दल के कलाकार गृहणी, स्कूली छात्र, इंजीनियर और कोरियोग्राफर भी हैं, बेलारूस में उनके नृत्य दल में तीन साल से लेकर 70 साल तक के आयु के कलाकार शामिल हैं। इसी प्रकार श्रीलंका का 12 सदस्यीय दल रायपुर पहुंचा, श्रीलंका दल के सदस्यों ने रायपुर पहुंचने पर खुशी जाहिर की और कहा कि यहां आकर बहुत अच्छा महसूस हो रहा है, यहां का मौसम श्रीलंका जैसा ही है, यहां के लोग और श्रीलंका के निवासियों का रंग-रूप, कद-काठी लगभग समान ही है, वेशभूषा भी मिलती-जुलती है। छत्तीसगढ़ के समान ही श्रीलंका में भी धान और चाय का उत्पादन बहुतायत से होता है, श्रीलंका के दल प्रमुख उमा श्रीधरन ने बताया कि उनका निवास स्थान मध्य श्रीलंका में है और उनकी भाषा तमिल है। सत्य साईं कलालयम नाम की उनकी संस्था है, इसी संस्था के 12 कलाकार रायपुर में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में अपनी कला का प्रदर्शन करने आए है। श्रीलंका में अगस्त में महीने में भगवान बुद्ध के पूजा के अवसर पर विशेष नृत्य किया जाता है, श्रीलंका का राष्ट्रीय त्यौहार पैराहरा है। सुश्री श्रीधरन ने बताया कि श्रीलंका के कलाकारों द्वारा चार प्रकार के नृत्य प्रस्तुत किया जाएगा। जिसमें पॉट डान्स जिसमें गांवों की महिलाएं घड़ा में पानी लेकर पनीहारिन की तरह जाते हुए डान्स करती है। हारर्वेस्टिंग डान्स खेती-किसानी के समय किसानों द्वारा की जाती है। स्वार्ड एण्ड रबान डान्स जुलाई के महीने में विशेष पूजा के समय की जाती है, पीकाक एवं शॉल डान्स श्रीलंका में किए जाने वाला मयूर नृत्य है। तीन दिन चलने वाले इस आयोजन में देश ने आदिवासी संस्कृति को सहेजने और लोककला का स्थान जागृत रखने का प्रयास किया है, संस्कृति का सम्वृद्धि प्रदेश को राष्ट्रीय स्तर पर उकेर रही है।

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