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सागर के नौजवानों ने जब दिखाया राष्ट्र सेवा का जज्बा : लेखक – अशोक मनवानी

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भोपाल(म.प्र.): गुजरात के मोरवी नगर में वर्ष 1979 का अगस्त महीना भारी तबाही लेकर आया था, मोरवी नगर के नज़दीक बने बांध के बंधान भारी वर्षा और पानी के दबाव की वजह से टूट गए और बस्ती में भारी बाढ़ की वजह से जीवन तहस-नहस हो गया। ऐसे कठिन समय में गुजरात के साथ ही अन्य प्रदेशों के संगठनों ने भी राहत कार्यों में सहायता की थी। पड़ौसी राज्य मध्यप्रदेश के नगरों से अनेक संगठन सेवा के लिए मोरवी पहुँच गए थे। मालवा क्षेत्र से काफी लोग मदद के लिए गए थे। फिल्मकार प्रवीण पाटोद बताते हैं कि महेश्वर जैसे नगरों से तो बच्चों ने गुल्लक के पैसे तक भेज दिए थे, मध्यप्रदेश के सागर नगर से गुजरात का गहरा संबंध है, गुजरात के अनेक परिवार वर्षों, सदियों पहले सागर आकर बसे। कुछ परिवारों ने यहाँ बीड़ी कुटीर उद्योग को स्थापित करने में योगदान दिया। सागर में वर्ष 1979 में सेवा कार्यों के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक सक्रिय संगठन के रूप में कार्य करता था। उस वर्ष सागर में विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और तत्कालीन एन.सी.सी.अधिकारी, डॉ.एस.एन.मनवानी ने अनेक कैडेटस को मोरवी जाने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया। ये कैडेट्स निरंतर दो-तीन हफ्ते गुजरात में रहे और त्रासदी के कारण जान-माल की हानि उठा चुके पीड़ित नागरिकों की भरपूर मदद की। चाहे जल प्लावन का शिकार हुए लोगों के घरौंदे फिर से बसाने का काम हो या फिर उनकी जीविका का साधन फिर शुरू हो जाए, इस दिशा में ठोस प्रयास हो, सागर के युवाओं ने जिस ज़ज्बे और जुनून से काम किया वो राहत कार्य के क्षेत्र में एक अनोखा उदाहरण माना जा सकता है। सागर के संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी मामा आठले, प्रो. वाखले और प्रो.पी.के.पाटनकर ने प्रो. मनवानी को हर तरह की सहायता और मागदर्शन देने का कार्य किया। इससे बिना देर किए एक सक्षम दल गुजरात रवाना किया जा सका। जब दल रवाना हो रहा था, अनेक बच्चे और किशोर वय के लोग रेलवे स्टेशन छोड़ने गए थे। निश्चित ये दृश्य किसी के लिए कुछ करने और मानवता के पक्ष में कार्य करने का हौसला देने वाला एक अध्याय था। दल गया, कार्य कर लौट आया,नगर वासियों ने ऐसे सेवभावियों का अभिनंदन भी किया। सागर के राजनेता और गीतकार विठ्ठल भाई पटेल ने भी स्वैच्छिक सहयोग प्रदान किया था। आज सागर नगर की ये विभूतियां इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके कृतित्व का स्मरण 39 बरस बाद शिद्दत से किया जा रहा है। एक छोटे से कस्बे से बड़े नगर में तब्दील हुए सागर में आज़ादी के पहले स्थापित विश्वविद्यालय जिसे डॉ. सर हरिसिंह गौर ने स्थापित किया था, इस शहर को प्रबुद्ध और सामाजिक दायित्व का बोध करने वाला केन्द्र बनाया है। सागर से वे युवक जो 39 बरस पहले मोरवी गए थे, उनमें से अधिकांश नगर से बाहर देश-प्रदेश में यहाँ भी सेवारत हैं अपनी सामाजिक भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। चार दशक पहले मीडिया ऐसे कार्यों की हौसला अफजाई के लिए इस तरह उपलब्ध नहीं था, जिस तरह आज लोग उंगली कटाकर सोशल मीडिया पर शहादत का श्रेय लेते हैं, इसलिए आज उस भूले बिसरे योगदान की याद कर गर्व का अनुभव किया जा सकता है।

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