Home साहित्य राजनीति को सेवानीति में बदलते राजेन्द्र शुक्ल : ताहिर अली

राजनीति को सेवानीति में बदलते राजेन्द्र शुक्ल : ताहिर अली

लेख : उद्योग मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल के जन्म-दिवस तीन अगस्त पर विशेष

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लेखक : ताहिर अली

पूर्व संयुक्त संचालक जनसंपर्क

मो. – 9425007372

             कहा जाता है, व्यक्ति जैसा सोचता है, धीरे-धीरे वह वैसा ही हो जाता है। सामाजिक जीवन में सक्रिय कार्यकर्ता का व्यक्तित्व कार्य और व्यवहार से बनता है। सेवा-संकल्प का समर्पित भाव, चुनौतियों की जिद और जूनून के साथ सामना करने का जज्बा व्यक्तित्व का ऐसा पहलू है, जो राजनीति को सेवानीति में बदल देता है। व्यक्ति अगर राजनेता हो तो प्रशासक, संगठक और कार्यकर्ता की भूमिकाओं से उसका व्यक्तित्व बनता है। श्री राजेन्द्र शुक्ल ने विचारों की व्यापकता व्यक्तित्व की विशालता, व्यवहार की सहजता और विशिष्ट संवाद क्षमता के अद्धुत संयोग से ऐसे ही व्यक्तित्व का निर्माण किया है, जो नफरत करने वालों के दिल में प्यार भर देता है। वे समय के साथ जनहित कार्यों को समर्पित लोक-हितैषी और अच्छी छवि के राजनेता के रूप में उभरे हैं।

श्री राजेन्द्र शुक्ल के व्यक्तित्व का सशक्त पहलू व्यापक धारा है। यह धारा व्यवहारिकता और आध्यात्मिकता के अनूठे संयोजन से बनी है। सहज, सरल, सुलभ और निश्छलता के चलते उनकी सफलताओं, करिश्माई व्यक्तित्व और सोच ने उन्हें एक अलग पहचान दी है। जनता ही उनकी भगवान है और उसी की सेवा में उन्हें नारायण के दर्शन होते हैं। उनके व्यक्तित्व में पारिवारिक संस्कार साफ-साफ दिखाई देते हैं। सत्तारूपी काजल की कोठरी में भी बेदाग श्री शुक्ल अपनी प्रशासनिक कार्य-शैली भी वे इस तरह का संतुलन बनाकर रखते हैं। विचारों की व्यापकता उनकी रुचि-नीति में भी दिखती है।

श्री शुक्ल के दरवाजे से जरूरतमंद और आम आदमी बिना अपनी समस्या के निदान के न जाने पाये, इसी संकल्प और नेक नीयत ने उन्हें विनम्रता को और मधुर वाणी का वह गुण दिया है जो हम अपने आदर्शों में तलाश करते हैं। उनकी सादगी उन्हें प्रदेश की राजनीति में अलग बनाती है। वे असाधारण व्यक्तित्व वाले साधारण जनसेवक हैं। उनके पास मानवीय संवेदनाओं, अनुभूतियों के उदार गुणों से भरा दिल है, जो हर पल पीड़ित मानवता की सेवा के लिये धड़कता है। उनकी सफलताओं का आधार एक अलग पहचान बना रहा है।

एक योगी की तरह हर आम-खास की बात, समस्या सुनना, मनन करना, तार्किकता की कसौटी पर कसना और तत्काल निर्णय कर समस्या के समाधान का निर्देश देना, उनका ऐसा गुण है, जिससे आम ‘जन’ के ‘मन’ से उनका एक आत्मीय रिश्ता बन जाता है। मानवीय संवेदनाओं अनुउद्वार गणों से भरा दिल है जो हर पल पीड़ित मानवता की सेवा के धड़कता है। वे कार्यों पर जितनी चौकस निगाह उतनी उनको चिंता है कि दरवाजे पर आए गंभीर रोग से पीड़ित और हर दुखियारे की मदद कर उसका दुख-दर्द दूर किया। उन्होंने कभी छवि निर्माण के प्रयास नहीं किये। उनकी सदइच्छाओं ने उनकी छवि को इतना पुख्ता कर दिया है कि लाख कोशिशें उसे धुँधला कर पाने में अक्षम हैं।

विंध्य विकास की लिखी नई इबारत

विन्ध्य माने पिछड़ापन। यह दुर्भाग्यपूर्ण था, लेकिन हकीकत थी। बड़े कद्दावर और प्रभावशाली नेता इस क्षेत्र में रहे, पर विन्ध्य की पहचान नहीं बनी। विश्व के नक्शे में रीवा को नाम दिलाने वाला एक व्हाइट टाइगर था, वह भी समय के साथ लुप्त हो चुका था, पर इसकी टीस श्री राजेन्द्र शुक्ल के मन में थी। उन्होंने उसे वापस ला दिखाया। लक्ष्य के प्रति जो जुनून और समर्पण श्री शुक्ल में है, वह विंध्य के विकास के रूप में चप्पे-चप्पे पर नजर आता है। विंध्य को देश के मानचित्र में एक स्पष्ट और चटखदार पहचान दिलाने में शुक्ल की अभूतपूर्व भूमिका है। उनकी प्रतिबद्धता और संकल्पबद्धता से विकास के सैकड़ों ऐसे छोटे-बड़े काम हैं, जिन्होंने क्षेत्र का चेहरा बदल दिया है।

विंध्य के क्षेत्र में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा पर्यटन विकास को श्री शुक्ल ने प्राथमिकता में रखा है। अपने क्षेत्र के विकास के लिये उनके ड्रीम प्रोजेक्ट मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी को मूर्त रूप देकर सफेद शेरों सहित अन्य वन्य-जीवों के अभ्यारण्य की स्थापना उनका बड़ा काम है। रीवा शहर चारों ओर से फोरलेन सड़कों से जुड़ रहा है। उनके प्रयास ही हैं कि कई फोर-लेन सड़कों का निर्माण तेजी से शुरू हो चुका है। श्री शुक्ल ने सड़कों के निर्माण के लिये केन्द्र सरकार से राशि मंजूर कराई। पहले चरण में सड़कों को चलने लायक बनवाया, जिनमें मनगवाँ से चाकघाट, रीवा-हनुमना, जबलपुर-बेला, रीवा-सतना, रीवा-सीधी-सिंगरौली आदि सड़कें शामिल हैं। रीवा से बनारस तक की सड़क बन चुकी है। रीवा से शहडोल-अमरकंटक मार्ग को प्रधानमंत्री चतुर्भुज योजना में शामिल कराया। निकट भविष्य में 6-लेन की सड़कें बनने वाली हैं। इन सड़कों के अलावा श्री शुक्ल ने स्थानीय, कस्बाई तथा ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का जाल बिछवा दिया है। आज रीवा के लगभग सभी गाँव की सड़कें मुख्य सड़कों से जुड़ चुकी हैं।

रीवा के गुढ़ स्थित पहाड़ पर विश्व के सबसे बड़े 750 मेगावॉट सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना भी उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धि है। ग्रेट शो-मेन फिल्म अभिनेता स्व. राजकपूर की रीवा से जुड़ी यादों को चिर-स्थाई बनाये रखने तथा विंध्य की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के उद्देश्य से करीब 18 करोड़ की लागत से एक हजार सीट के भव्य कृष्णा-राजकपूर ऑडिटोरियम की स्थापना ने नगर को गौरव प्रदान किया है। साथ ही स्थानीय प्रतिभाओं को अपनी कला के प्रदर्शन के लिये उचित मंच भी मिला है। श्री शुक्ल ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय का परिसर स्थापित कर शिक्षा के क्षेत्र में एक महान कड़ी जोड़ दी। बाणसागर की नहरों का जाल बिछाकर किसानों को सिंचाई की सौगात दिलवाना भी कालांतर में उनका उनका बड़ा काम माना जायेगा।

श्री शुक्ल विकास कार्यों के लिये धुन के पक्के माने जाते हैं। उन्होंने रीवा विकास का विजन रखकर उसके चौतरफा विकास में विशेष रुचि ली है। इसी के चलते रीवा विकास का पर्याय बनकर उभरा है। धार्मिक स्थल रानी तालाब, चिरहुआ का सौंदर्यीकरण, स्वामी विवेकानंद पार्क, फ्लाई-ओवर, रिंग-रोड, मॉडल सड़क, शॉपिंग मॉल, कलेक्ट्रेट भवन, गार्बेज ट्रीटमेंट प्लांट, अंतर्राज्यीय बस स्टेण्ड, संजय गाँधी मेमोरियल चिकित्सालय में विभिन्न अत्याधुनिक उपकरण, जिला चिकित्सालय को सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बनाना, फूड प्रोसेसिंग पार्क, मीठा पानी घर-घर पहुँचाने और पार्किंग की सुचारु व्यवस्था आदि जैसी अनेक उपलब्धियाँ आज उनकी ही बदौलत रीवा के नाम दर्ज हैं।

लक्ष्मणबाग गौ-शाला की स्थापना से गायों की सेवा के साथ सुरक्षा हो रही है। गाय के गोबर से अगरबत्ती बनाना और गोबर के गमले बनाने का काम भी गौ-शाला में हो रहा है। ऐतिहासिक बसामन मामा की पुण्य-भूमि पर बेसहारा गौ-वंश को रखने के उद्देश्य से वन्य-विहार गौ-शाला की स्थापना भी की गई है। साथ ही उन्होंने महत्वपूर्ण लो-कास्ट एयरपोर्ट भी स्वीकृत करवाया, जिसका विकास कार्य प्रगति पर है। इससे रीवा सहित पूरे विंध्य को यातायात और संचार के साधन मिलेंगे, जो क्षेत्र का कायाकल्प कर देंगे। रीवा-राजकोट ट्रेन प्रारंभ हो जाने पर विंध्य क्षेत्र का चतुर्दिक आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विकास होगा।

प्रशासनिक कौशल के धनी

श्री शुक्ल्‍ अपने तीन कार्यकाल में मंत्रीमंडल में विभागों के दायित्व निर्वहन की कसौटी पर खरे भी उतरे। नेतृत्व के प्रति निष्ठा और राज्य सरकार के लक्ष्यों को पूरा करने की प्रतिबद्धता श्री शुक्ल की विशेषता हैं। बिजली संकट से जूझते हुए मध्यप्रदेश को रोशन करने की चुनौती को उन्होंने बखूबी उपलब्धि में बदला। आज मध्यप्रदेश सरप्लस बिजली वाला प्रदेश है। श्री शुक्ल ने उद्योग मंत्री का प्रभार लेते ही प्रदेश में औद्योगिक क्रांति का लक्ष्य लेकर अपने दायित्वों के निर्वहन में कुशलता प्रदर्शित की। आज प्रदेश औद्योगिक निवेश का मॉडल डेस्टिनेशन है। खनिज विभाग का दायित्व भी उन्होंने बखूबी निभाया। खनिज आधारित उद्योग प्रदेश में स्थापित हो, इसके लिए उन्होंने सार्थक और सुचिंतित प्रयास किए और उनके कार्यकाल में खनिज साधन विभाग की राजस्व आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

ओहदा उनके लिए कभी पहचान नहीं बना

श्री शुक्ल ने अपने संस्कारवान पिता समाजसेवी स्व. श्री भैयालाल शुक्ल के गुणों को सदैव ध्यान में रखते हुए स्वयं को ढाला। ओहदा उनके लिये कभी पहचान नहीं बना, बल्कि श्री शुक्ल से ओहदे की पहचान बनी। धीर-गंभीर ऋषि-मुनि मानव सेवा के लक्ष्य में एक तपस्वी की तरह लीन रहना उनका लक्ष्य है। उनकी सेवा भावना की तत्परता को कभी किसी पद का लालच धीमा नहीं कर पाया है। लोगों के जीवन में थोड़ी खुशियाँ ला सकें और अपने अंचल, प्रदेश के विकास के लिये कुछ अच्छा कर सकें, यही उनकी पूजा कहे या लक्ष्य है। अगर एक पंक्ति में श्री शुक्ल को परिभाषित करना हो तो यह कहा जा सकता है कि समाज और देश के हित की यात्रा शुरू करने के बाद न कभी उन्होंने पीछे मुड़कर देखा और न कभी मील के पत्थर गिने। जन नायक श्री शुक्ल के संस्कार और सद्व्यवहार उनके जीवन में साकार होते है।

———- ताहिर अली

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