रायपुर(छ.ग.)14-3/ इन्दिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा पौधा किस्म संरक्षण एवं कृषक अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत कृषक जागरूकता सहप्रशिक्षण का एक दिवसीय कार्यक्रम “जीविका पार्जन हेतु जैव विविधता” दिनांक 14 मार्च 2018 को आयोजित किया गया, प्रदर्शनी में मुख्य रूप से औषधीय पौधों में विविधता एवं उसकी महत्ता को प्रदर्शित किया गया था, जबकि अन्य फसलों में भी विशिष्ट प्रजातियों की विविधता को प्रदर्शित किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन पिछले पांच वर्षो से छत्तीसगढ़ प्रदेश के हर जिले में लगभग 51 जागरूकता सह प्रशिक्षण कार्यक्रम कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से किया जाता रहा है, इस वर्ष रायपुर में प्रथम जागरूकता कार्यक्रम किया गया, जिसमें कुल 14 कुषि विज्ञान केन्द्रों से लगभग 400 कृषकों ने भाग लिया एवं अपने फसल विविधता का प्रदर्शन किया, कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माननीय डॉ. एस. के. पाटिल कुलपति, इन्दिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर थे। कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि पौधा किस्म संरक्षण एवं कृषक अधिकार प्राधिकरण भारत सरकार द्वारा दिये गये प्रमाण पत्र कितने महत्वपूर्ण हैं, इस पर देश का राजकीय चिन्ह तीन मुख वाला शेर अंकित है, जो कि इस प्रमाण पत्र की महत्ता को दर्शाता है, उन्होंने आगे बताया कि कृषक के किस्म के अधिकार को सुरक्षित रखते हुए, उनकी बौद्धिक क्षमता के अधिकार को भी प्रदत्त करता है, यह सिर्फ भारत वर्ष मे कृषकों को उनकी किस्म के विकास एवं संरक्षित करने हेतु दिया जाता है। कार्यक्रम में कुल 31 कृषकों को उनकी प्रजातियों का प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. के. वी. प्रभु अध्यक्ष पौधा किस्म संरक्षण एवं कृषक अधिकार प्राधिकरण ने इस प्रकार की विविधता को देखते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में इतनी फसलों में विविधता और प्राकृतिक सम्पदा हैं, जो कि अतुलनीय है, जिनका संरक्षण करना अति आवश्यक है, उन्होंने औषधीय पौधो के परीक्षण हेतु एक केन्द्र स्थापित कराने मे सहमति जतायी है। कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि कृषकों की प्रजातियों का उपयोग यदि अन्य किसी संस्था द्वारा किया गया है, तो उन्हे उनका लाभांश दिया जायेगा एवं इसकी शुरूआत छत्तीसगढ़ प्रदेश से ही करना चाहता हूँ। डॉ. डी. के. मरोठिया सदस्य योजना आयोग छत्तीसगढ़ ने अपने उद्बोधन में कहा कि इन प्रजातियों का पंजीकरण एवं प्रलेखन करना अति आवश्यक हैं, जिससे कृषकों का इन प्रजातियों पर बौद्धिक संपदा का अधिकार मिल सके, इन प्रजातियों का परम्परागत ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है, इन्ही की वजह से इनका संरक्षण हो पाया हैं। इस कार्यक्रम में “युनिक फार्मर्स वैराइटी आफ छत्तीसगढ़” विषय पर एक काफी टेबल पुस्तक का विमोचन किया गया एवं पौध संरक्षण मे सराहनीय कार्य करने वाले कृषकों तथा औषधीय पौधो का संरक्षण करने वाले कृषकों के समूह को प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित भी किया गया। डॉ दीपक शर्मा, नोडल आफिसर, पी. पी. व्ही. एवं एफ. आर. ए. छत्तीसगढ़ द्वारा इस परियोंजना की गतिविधियां एवं उनकी उपलब्धियों के बारे में बताया तथा छत्तीसगढ़ के कृषकों को धन्यवाद दिया, जो अपनी स्थानीय प्रजातियों का पंजीकरण इतने उत्साह से अधिक से अधिक करवाया, जिससे हमारा प्रदेश प्रथम स्थान पर है। उन्होंने प्राधिकरण के रजिस्ट्रार जनरल डॉ. आर. सी. अग्रवाल एवं रजिस्ट्रार कृषक प्रजाति डॉ रवि प्रकाश को धन्यवाद दिया।
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