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नक्सलवाद पर अमित शाह की नीतियों का असर, दहशत में रहने वाले क्षेत्र अब विकास के पथ पर

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गृहमंत्री अमित शाह का निर्णायक वार, हुआ नक्सलियों का काम तमाम. 25 मार्च को गृहमंत्री अमित शाह ने नक्सलियों के गढ़ रहे पोटकपल्ली में सीआरपीएफ जवानों की हौसलाअफजाई की. छत्तीसगढ़ तेलंगाना से सटा पोटकपल्ली इलाका गवाह बना कि कैसै भारतीय व्यवस्था जब मजबूत होती है तो जनता भी बढ़चढ़कर अपनी भागेदारी करती है. गृहमंत्री अमित शाह ने नक्सलियों के गढ़ में जाकर स्थानीय आदिवासियों से मिलकर उनके दर्द को भी समझा.

गृह मंत्री का यह दौरा भारत सरकार की नीति का नतीजा है जो कि नक्सलियों को खत्म कर रही है और विकास के नए रास्ते भारत के अंदरूनी इलाके में खोल रही है. पिछले 8 सालों से नक्सल प्रभावित इलाकों में जो कदम उठाए गए हैं और उसके नतीजे जो सामने आए हैं वो ये साबित कर रहे हैं कि मोदी सरकार की नक्सल खात्मे की नीति कितनी प्रभावशाली है.

पिछले 8 सालों में नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षाबलों ने विशेष अभियान चलाया है जिसका नतीजा यह हुआ है नक्सलियों को भारी नुकसान पहुंचा है और जो इलाके कभी उनका गढ़ हुआ करते थे वो आज विकास की राह देख रहे हैं. इन इलाकों तक सड़क बन रही है जो कभी आईडी लैंडमाइन से भरे होते थे. बच्चों के हाथों में बस्ते किताब और पेन है जबकि पहले हथियार या फिर बारूद हुआ करते थे. युवा उम्मीद कर रहे हैं जल्द ही उनको रोजगार मिलेगा और उनका जीवन यापन होगा. अस्पताल उनके घरों के पास पहुंच गया है. नक्सलियों का गढ़ रहा पोटकपल्ली इलाका इन सारी बातों को बयान कर रहा है. यहा़ं स्कूल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, राशन वितरण केंद्र और सबसे अहम चीज सुरक्षाबलों का कैंप है. यह सिर्फ इकलौता इलाका नहीं है पिछले 9 सालों में नक्सल प्रभावित अंदरूनी इलाकों में 175 से भी ज्यादा ऐसे सुरक्षा बलों के कैंप बने हैं और उनके आसपास स्थानीय लोगों के लिए विशेष सुविधाएं विकसित हुई है. यह मोदी सरकार की गृह मंत्री अमित शाह की पहल पर नक्सल प्रभावित इलाकों के लिए रणनीति है जो अपना असर दिखा रही है. इस बात का जिक्र गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी जगदलपुर दौरे के दौरान किया था. इस दौरान उन्होंने लोगों को भरोसा दिलाया जल्द ही भारत के लोगों को मिलेगा नक्सलमुक्त भारत.

कभी बस्तर रीजन नक्सलियों का गढ़ था जिसके चार प्रमुख केन्द्र थे. बीजापुर, सुकमा, दांतेवाड़ा और बस्तर. जगदलपुर इस रीजन का हेडक्वार्टर था. नक्सलियों की प्रमुख समीति दंडकारण्य जोनल समीति भी इसी बस्तर रीजन में सक्रिय था और हिडमा समेत नक्सलियों के शीर्ष नेता जब चाहे तब सुरक्षाबलों को या फिर प्रमुख हस्तियों को अपना निशाना बनाते थे और यह दिखाते थे कि इलाके में उनका असर है. लेकिन जहां तक उनके प्रभाव की बात है तो आज की तारीख में ये पूरी तरीके से खत्म होता दिखाई दे रहा है. हमारे देश के जवानों के बलिदान से देश के सबसे बड़ी आंतरिक फोर्स अपना रीजनल हेडक्वार्टर नक्सल प्रभावित इलाके में स्थापित करने में कामयाब हो गई है. इसकी वजह से बड़ी तादात में सीआरपीएफ अंदरूनी इलाकों में अपने फारवर्ड बेस यानि नए कैंप भी स्थापित कर रही है जहां कुछ महीनों पहले ही नक्सली प्रमुखता से अपनी गतिविधियां चलाते थे. पिछले डेढ़ साल की बात करें तो इस अवधि में सीआरपीएफ ने अपने 18 फारवर्ड बेस स्थापित किए हैं जहां आजादी के बाद पहली बार देश की कोई फोर्स घुस पाई थी.

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