सरकार जल्दी ही कोडीन आधारित कफ सिरप के निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा सकती है. इससे जुड़ी नीतियों की समीक्षा की जा रही है. कई सांसदों ने कफ सिरफ को लेकर चिंता जताई थी कि इसका उपयोग दवा से ज्यादा नशे के लिए हो रहा है. इन नेताओं ने स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया से कोडीन वाले कफ सिरप पर पाबंदी की मांग की थी. इसके आधार पर स्वास्थ्य मंत्री ने ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) को मार्च में इस मामले में समीक्षा करके ज़रूरी सुझाव देने के लिए कहा था. अब DCGI ने स्वास्थ्य मंत्रालय को अपनी समीक्षा रिपोर्ट दे दी है.
कोडीन अफीम से बनी एक दर्दनिवारक दवा होती है जिसका इस्तेमाल आमतौर पर कफ, दर्द और डायरिया के इलाज में किया जाता है. यह एक तरह का पौधे से निकला प्राकृतिक एल्केलॉइड होता है जो अफीम के अर्क में पाया जाता है. कोडीन के इस्तेमाल से बने कुछ चर्चित ब्रांड्स में फाइजर कंपनी का कोरेक्स, एबोट्ट का फेनसेडिल और लेबोरेट फार्मास्यूटिकल का एस्कफ आदि प्रमुख हैं. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि उत्तर प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक जैसे कई राज्यों में इनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है. अधिकारियों के मुताबिक, कोडीन संबंधित दवाओं के लिए नियम कड़े करने की ज़रूरत है, हालांकि इसे लेकर समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाएगा.
NCB 2015 से कर रही पाबंदी की मांग
वैसे तो कोडीन वाले कफ सिरप पर पांबदी की मांग 2015 से ही होती रही है, लेकिन कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया है. 2017 में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने DCGI से इसकी उपलब्धता घटाने के लिए कहा था. NCB का कहना था कि इस दवा का नशे के तौर पर गलत इस्तेमाल हो रहा है. ऐसे में इसकी उपलब्धता को कम किया जाना चाहिए ताकि ब्यूरो बाजार में इसकी आसानी से पहचान कर सके. कोडीन आधारित दवाओं पर प्रतिबंध को लेकर बुलंद होती आवाज और NCB से हस्तक्षेप के बाद कई दवा निर्माता कंपनियों ने अपने चर्चित सिरप में इसकी मात्रा को बदल दिया है. मसलन एलेंबिक फार्मा ने अपने लोकप्रिय कफ सिरप ग्लायकोडिन से कोडीन को ही हटा दिया है.
दिमाग, शरीर को सुन्न कर देता है
कोडीन आधारित कफ सिरप को लेकर सांसदों ने स्वास्थ्य मंत्री को जो पत्र लिखा था, उसकी कॉपी न्यूज18 के पास है. इस लेटर में एमपी के राज्यसभा सदस्य अजय प्रताप सिंह, तमिलनाडु से डॉ कनिमोई. केरल से डॉ वी. सिवादासन, एलामारम करीम, महाराष्ट्र से फौज़िया ख़ान और ओडिशा से अमर पटनायक आदि सांसदों ने ऐसे कफ सिरप पर रोक की मांग की थी. सिंह ने 15 मार्च को राज्यसभा में कहा भी था कि इन दिनों बाजार में कोरेक्स सिरप नशा करने वालों के लिए एक अहम उत्पाद बन चुका है. वैसे तो कोरेक्स एक कफ सिरप है लेकिन इसका इस्तेमाल उपचार से ज्यादा नशे के लिए होता है. सिंह की बात का समर्थन कई अन्य सांसदों ने भी किया था. उन्होंने चेताते हुए कहा था कि इसके उपयोग से दिमाग और शरीर पूरी तरह सुन्न हो जाता है. आजकल युवाओं में इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ता जा रहा है.
कफ को दबाने में काम आता है कोडीन
कोरेक्स कफ सिरप को अमेरिका की फार्मा कंपनी फाइजर बनाती है. यह कई दवाओं का मिश्रण है, जो सूखी खांसी के उपचार में काम आता है. हालांकि इसके सभी प्रकारों में कोडीन नहीं डाला जाता है. कोरेक्स टी कफ सिरप दो दवाओं का मिश्रण है- कोडीन और ट्रिप्रोलिडीन. कोडीन का इस्तेमाल कफ को दबाने में होता है. यह कोडीन दिमाग में कफ केंद्र की गतिविधि को कम करता है. वहीं ट्रिप्रोलिडिन एंटी-एलर्जी का काम करता है.