आपदा कोई भी हो उसका सबसे ज्यादा असर गरीबों और आम आदमी पर ही पड़ता है. पहले महामारी की आपदा ने संकट में डाला और अब महंगाई डायन भी ‘आपदा’ बनती जा रही है. खाने-पीने की चीजों के दाम बेतहाशा बढ़ने से गरीबों को पेट पालना भी मुश्किल होता जा रहा है.
मनीकंट्रोल पर चली शोध आधारित एक खबर के अनुसार, मुंबई की मनीषा मोहिते (38 साल) को अपने सात सदस्यीय परिवार को पालना अब मुश्किल होता जा रहा है. मनीषा का कहना है कि पांच महीने पहले शुरू किया चाट का ठेला अब इसलिए बंद करना पड़ेगा, क्योंकि तेल, गैस के साथ खाने-पीने की अन्य वस्तुओं के दाम बेतहाशा बढ़ते जा रहे हैं. ऐसे में हमारे लिए पुरानी कीमत पर चाट की प्लेट बेचना मुमकिन नहीं रह गया है और लोग एक प्लेट की कीमत 5 रुपये बढ़ाने से भी पीछे हट रहे हैं. इतना ही नहीं ग्राहकों की संख्या में भी तेजी से कमी आ रही है और हमारा घर चलाना मुश्किल हो गया है.
महामारी ने रोजगार छीना अब महंगाई ने बढ़ाया संकट
यह बात किसी से भी छिपी नहीं कि महामारी के दौरान करोड़ों कामगारों और मजदूरों का रोजगार छिन गया था. इसके साथ ही खाने-पीने की वस्तुओं, मकान, हेल्थकेयर और ट्रांसपोर्ट की महंगाई भी 50 फीसदी तक बढ़ गई है. पेट्रोल-डीजल जैसे ईंधन की कीमतों में वृद्धि होने से लगभग सभी कमोडिटी महंगी हो गई हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से पूरी दुनिया में महंगाई का जोखिम बढ़ रहा है.
ब्याज दरों में बढ़ाई दोहरी मुश्किल
महंगाई से परेशान जनता को रिजर्व बैंक ने भी झटका दिया है. आरबीआई ने इस महीने की शुरुआत में अपनी ब्याज दरें यानी रेपो रेट में 0.40 फीसदी की वृद्धि कर दी, जिससे सभी तरह के कर्ज महंगे हो गए. ऐसे में लोगों ने नया कर्ज लेना कम कर दिया जिससे खर्च भी घटने लगा. यानी रिजर्व बैंक ने महंगाई काबू में करने के लिए ब्याज दर बढ़ाई लेकिन इससे गरीबों की मुश्किल और बढ़ गई. एक्सपर्ट भी मान रहे कि खर्च और खपत में कमी आई तो अर्थव्यवस्था दोबारा सुस्त पड़ जाएगी.
बेहद जरूरी खर्चों पर ही जोर
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के आंकड़ों के अनुसार, महामारी के दौरान करीब 70 लाख लोगों ने अपने रोजगार गंवा दिए थे. अभी लोगों के हाथ में पर्याप्त पैसा पहुंचा भी नहीं कि महंगाई ने चुनौतियां और बढ़ा दी. आलम यह है कि महंगाई के दबाव में लोगों ने अपने घर का बजट भी बदल दिया और अब सिर्फ बेहद जरूरी खर्चों पर ही जोर दिया जा रहा है. लोगों का कहना है कि फिलहाल उनकी बचत शून्य हो गई है.
एक होटल में काम करने वाले नरेश वर्मा का कहना है कि हम तेल, साबुन जैसी जरूरी चीजों को पहले खरीद लेते हैं, ताकि महीने का बजट बिगड़ न जाए. महंगाई का आलम ऐसे समझा जा सकता है कि पिछले साल अप्रैल में सब्जियों की महंगाई दर जहां शून्य से 14.53 फीसदी नीचे थी, वहीं इस साल अप्रैल में यह 15.41 फीसदी की तेजी से बढ़ रही है.