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चीनी मिट्टी की बर्तन की तरह सख़्त हो गया था हार्ट, जानिए डॉक्टरों ने कैसे बचाई मरीज की जान

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छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े अस्पताल डॉ भीमराव अंबेडकर हॉस्पिटल (Dr Bhimrao Ambedkar Hospital) के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है.डॉक्टरों ने एक रेयर हार्ट सर्जरी की है. मरीज के दिल का एक हिस्सा बायां आलिंद (Left Atrium) चीनी मिट्टी की बर्तन की तरह सख़्त हो गया था तो डॉक्टरों ने मरीज के दिल की अत्यंत जटिल कोरोनरी बाइपास और वाल्व प्रत्यारोपण सर्जरी किया है.

इस बीमारी से ग्रसित था मरीज

दरअसल रायपुर जिले के 50 वर्षीय मरीज कुछ दिनों पहले सांस फूलने, छाती में दर्द एवं दिल की धकधकी के साथ अस्पताल में इलाज के लिए आता था. तब इकोकार्डियोग्राफी एवं कोरोनरी एंजियोग्राफी में ही पता लगा लिया कि मरीज के कोरोनरी आर्टरी में ब्लाकेज है और इसके माइट्रल वाल्व में सिकुड़न एवं ट्राइकस्पिड वाल्व में लीकेज है.

छाती के एक्स रे पता चला कि मरीज के दिल का आकार बहुत ही बड़ा हो गया है. आमतौर पर दिल की साइज जितनी बड़ी होती है मरीज का हार्ट उतना ही कमजोर होता है और ऑपरेशन के दौरान रिस्क बढ़ जाता है. इसका सी.टी. रेशियो 0.8 से भी ज्यादा था.सामान्य सी. टी. रेशियो 0.4 से 0.5 होता है. इस अवस्था को सीवियर कार्डियोमेगाली कहा जाता है.

6 घंटे में हुई हार्ट सर्जरी

हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू ने बताया कि, इस ऑपरेशन में मरीज का बायां आलिंद चीनी मिट्टी के बर्तन की तरह सख़्त हो गया था. इसके साथ ही मरीज के बायें आलिंद का आकर हृदय के आकार से भी बड़ा हो गया था. यही नहीं इन तमाम समस्याओं के साथ ही मरीज के कोरोनरी आर्टरी में ब्लॉकेज होने के साथ-साथ माइट्रल वाल्व एवं ट्राइकस्पिड वाल्व भी खराब हो गया था. इस जटिल ऑपरेशन को करने के लिए टीम ने 6 घंटे लगे. जटिल सर्जरी यानी हार्ट के एक साथ दो ऑपरेशन किया गया है. ऑपरेशन के 10 दिन बाद मरीज अब ठीक है और अस्पताल से डिस्चार्ज लेकर घर जाने को तैयार है और ये ऑपरेशन स्वास्थ्य सहायता योजना के अंतर्गत निशुल्क हुआ है.

पैर के नस को हार्ट के नसों में लगाया गया

इस ऑपरेशन में मरीज के दो ऑपरेशन एक साथ हुए है. पहले मरीज का कोरोनरी आर्टरी बाईपास किया गया जिसमें पैर की नस को हार्ट की नसों में लगाया गया, उसके बाद मरीज के हार्ट को खोलकर, मरीज के क्षतिग्रस्त माइट्रल वाल्व को निकालकर मेटल का कृत्रिम वाल्व प्रत्यारोपित किया गया एवं ट्राइकस्पिड वाल्व को रिपेयर किया गया. इस ऑपरेशन में ये बात अहम रही कि मरीज के बाएं आलिंद का आकार 15×15 सेमी. का हो गया था जिसको एन्यूरिज्मल जाइंट लेफ्ट एट्रियम कहा जाता है जिसका आकार सामान्य हृदय के आकार (12×8.5 x 6 सेमी.) से भी ज्यादा हो गया था.

ऑपरेशन से डरकर परिजन घर चले गए थे

कार्डियक सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू ने बताया कि, जब इस मरीज को एक साथ दो ऑपरेशन – कोरोनरी बाईपास एवं वाल्व प्रत्यारोपण के बारे में बताया गया एवं साथ ही साथ इसके बहुत ही ज्यादा हाई रिस्क के बारे में बताया गया तो मरीज और परिजन ऑपरेशन के लिए मना करके घर चले गये थे. लेकिन कुछ दिनों बाद उन्होंने वापस आकर ऑपरेशन के लिए सहमति जताई.

दिल के अंदर से निकाला इतना ब्लड

डॉ. कृष्णकांत साहू का कहना है कि मेरे 12 साल के अनुभव में लेफ्ट एट्रियम चीनी मिट्टी की तरह सख़्त हो जाने का ये पहला मामला है. इसको पोर्सिलीन लेफ्ट एट्रियम कहा जाता है. सामान्यतया रूमैटिक हार्ट डिजिस के केस में प्रमुख रूप से वाल्व एवं वाल्व के चारों तरफ चूना जमता है पर पूरा का पूरा लेफ्ट एट्रियम कैल्सिफाईड होना बहुत ही हैरानी वाली बात है. इतना ही नहीं मरीज के हृदय के अंदर करीब करीब 100 से 150 ग्राम का खून का थक्का निकाला गया. इस तरह के मरीज को लकवा होने का बहुत ही अधिक चांस होता है.

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