छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित जवाहरलाल नेहरू नेशनल एजुकेशन कॉन्क्लेव के छठवें सत्र में ‘टीचर्स एज लीडर्स’ (नेतृत्वकर्ता के रूप में शिक्षक) विषय पर चर्चा हुई। इस दौरान शिक्षा में नवाचार करने वाले और कोरोना काल में शिक्षा क्षेत्र में नेतृत्वकर्ता बनकर सामने आए शिक्षकों के उदाहरण के साथ ही भविष्य की संभावनाओं पर बात हुई। इस सत्र के चेयरपर्सन अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के प्रो. बी.एस. ऋषिकेश थे। अन्य वक्ताओं को सुनने के बाद अपने सार वक्तव्य में प्रो. ऋषिकेश ने कहा, लीडरशिप क्वॉलिटी के लिए शिक्षकों को स्वशासी माहौल देना होगा। बकौल प्रो. ऋषिकेश, शिक्षक किसी एजेंसी की तरह की बेहतरीन काम कर सकते हैं, बस उनके स्किल (कौशल) को पहचानने और उन पर विश्वास करने की जरूरत है। शिक्षकों में नेतृत्वकर्ता के तौर पर कई आयाम होते हैं। यह भी जरूरी है कि उनके नवाचारों के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाए न कि रोका-टोका जाए।
सत्र के चेयरपर्सन प्रो. ऋषिकेश का कहना था कि शिक्षकों का काम केवल अध्ययन-अध्यापन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि समाज निर्माण में उनकी भूमिका अहम है। शिक्षक के पास विचारों का भंडार होता है, जिसका उपयोग समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में किया जाना चाहिए। अब तक शिक्षकों के लिए बने सहयोगात्मक संचरना में नए बदलाव की जरूरत पर उन्होंने बल दिया। इस दौरान जीएनसीटीडी नई दिल्ली के ओएसडी डॉ. बी.पी. पांडेय ने कहा कि शिक्षा का आधारभूत सिद्धांत समानता और गुणवत्ता की उत्कृष्टता पर टिका है। उन्होंने बताया कि दिल्ली सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरी के लिए मेंटरशिप एजुकेशन प्रोग्राम शुरू किया है, जिसके जरिए शिक्षकों को दुनियाभर में संचालित शिक्षा की पद्धतियों से रूबरू कराते हुए आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाता है। दिल्ली में शिक्षा क्षेत्र में क्लस्टर लीडरशिप प्रोग्राम भी चलाया जा रहा है, जिसका प्रत्येक महीने फीडबैक लेकर सुधार की दिशा में काम किया जाता है।
एससीईआरटी राजस्थान की सुश्री नीरु भारद्वाज का कहना था कि ऑफलाइन और ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने में भी शिक्षकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जिस तरह छत्तीसगढ़ में ‘पढ़ई तुंहर दुआर’ के जरिए कोरोना काल में भी बच्चों तक शिक्षा का प्रसार हुआ, उसी तरह राजस्थान में ‘आओ घर में सीखें’ कार्यक्रम चलाया। इसके अलावा बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि बनाए रखने के लिए वाट्सएप आधारित क्वीज काम्पीटिशन चलाया गया। वहीं शिक्षकों ने नई पहल करते हुए प्रत्येक छात्र को प्रतिदिन फोनकॉल कर उनकी समस्याओं का निदान किया।
झारखंड के धूमका जिला के डूमरथर गांव में मोहल्ला क्लास की शुरुआत कर देशभर अपनी पहचान बनाने वाले डा. सपन कुमार ने बताया कि बतौर शिक्षक और लीडर उन्होंने मोहल्ला क्लास के लिए घरों के बाहर की दीवारों को ही ब्लैकबोर्ड बना डाला। संसाधन की कमी पर प्राकृतिक चीजों का उपयोग किया गया। बाल-विवाह रोकने के लिए उन्होंने गांव में गोगो-बाबा (माता-पिता) समिति बनाई। वहीं कोरोना के प्रति जागरुकता अभियान चलाया, जिसका परिणाम रहा कि गांव में एक भी व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं हुआ। उन्होंने ‘अशिक्षा से आजादी’ का नारा दिया।
एससीईआरटी छत्तीसगढ़ की ओर से मौजूद श्री डी. दर्शन ने बताया कि लीडर की भूमिका में रहे शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य में अनेक पहल किए गए। शिक्षकों की सक्सेस स्टोरी को पोर्टल में डाला गया। छत्तीसगढ़ में शिक्षक लाउडस्पीकर गुरुजी, बुल्टू के बोल, मिस्ड कॉल गुरुजी, टीवी वाला गुरुजी, रिक्शावाला गुरुजी, मोटरसाइकिल गुरुजी, पपेट डांस गुरुजी, ब्लॉग राईटर गुरुजी जैसे नवाचार कर विद्यार्थियों तक पहुंचे। इस दौरान उन्होंने आंकड़े भी प्रदर्शित किया।
इस सत्र में एनसीईआरटी में शिक्षक प्रशिक्षण की प्रमुख प्रो. शरद सिन्हा ने कहा कि किताबों और जमीनी स्तर में लीडरशिप की परिभाषा बिल्कुल अलग है। लीडरशिप की असल परिभाषा को कोरोना काल के दौरान शिक्षकों ने अपने नवाचारों व विद्यार्थियों तक पहुंचने के प्रयास के माध्यम से सामने रखा। उन्होंने कहा कि नयी शिक्षा नीति में भी शिक्षक के महत्व को समझते हुए कई बिंदु शामिल किए गए हैं। प्रो. सिन्हा ने श्लोक को जरिया बनाकर कहा कि, गुरू में ब्रह्मांड समाहित है। साथ ही उन्होंने नवाचारों में सरलता पर बल दिया।