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शीर्षक- वे दो बालक

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विधा- गद्य (संस्मरण) : लेखिका, श्रीमती भावना तायवाड़े

अभी तीन माह पूर्व ही रोहन की ऑनलाइन कक्षाएँ शुरू हुई थीं। मुझे याद है, विद्यालय से सूचना आई कि दो दिन पश्चात बच्चों की ऑनलाइन कक्षाएं शुरू की जाएंगी आपको पासवर्ड और अन्य जानकारियां आपके मोबाइल मैं मैसेज के द्वारा प्रदान की जाएंगी। मैंने ओके का बटन दबा दिया और मेरे मन में एक अलग ही उत्साह हिलोरे लेने लगा।

पिछले तीन महीनों से बच्चे घर में बैठे-बैठे आलसी जो बन रहे थे। रोहन के लिए तो मेरी चिंताओं ने एक विशाल भयावह रूप ले लिया था। अब जाकर मुझे तसल्ली मिली।

ऑनलाइन कक्षा का पहला दिवस, बेटा तीन माह बाद आज पुनः सुबह जल्दी उठ गया नहा धोकर तैयार हुआ, विद्यालय की यूनिफॉर्म कुछ इस प्रकार पहनी मानो किसी बड़े पद पर उसकी नियुक्ति की गई हो और मुझे भी कुछ ऐसा गर्व का अनुभव हो रहा था जैसे मैंने अपने बेटे को सीमा पर दुश्मनों से युद्ध करने के लिए तैनात कर दिया हो।

यह कैसी कक्षा …? कॉपी और ब्लैकबोर्ड की जगह मोबाइल ने और पेन व चॉक का स्थान कीबोर्ड की बटनों ने ले लिया था। पहले दिन की कक्षा समाप्त होते ही बेटे ने कहा कि उसे मोबाइल पर पढ़ाई करने में असुविधा हो रही है वह पापा के लेपटॉप से पढ़ना चाहता है, शाम को जब रोहन के पिताजी घर आये तो बच्चे को कोई असुविधा न हो इसके चलते अपने लेपटॉप को उसकी सेवा में हाज़िर कर दिया। रोहन अब खुश था किन्तु अगले ही दिन की कक्षा के बाद उसने हेडफोन की मांग की कि उसे टीचर का पढ़ाना ठीक से सुनाई नहीं आ रहा। मैंने तुरंत ही हामी भर दी और उसे उसकी पसंद का एक अच्छा- सा हेडफोन लेकर दिया। अब अगले दिन की शुरुआत पुनः एक नई फरमाइश के साथ हुई। रोहन का कहना पड़ा कि शिक्षक पढाई से संबंधित गतिविधियों के जो वीडिओज़ भेजते हैं वे रुक- रुक कर चल रहे हैं अर्थात शायद नेटवर्क आता- जाता चल रहा है अतः उसे घर में वायफाय कनेक्शन चाहिए। इसमें कौन- सी बड़ी बात, हमारा बेटा अव्वल मार्क्स से पास जो होना चाहता है। लगा दिया गया अगले ही दिन घर में वायफाय कनेक्शन।

अब बेटा दिनभर लेपटॉप के सामने, कक्षा समाप्त होने पर भी पढ़ता हुआ ही दिखाई देता। मेरे आनंद, उत्साह और बेटे के प्रति गर्व की कोई सीमा ही न रही। पूरे दो माह की लगातार ऑनलाइन पढ़ाई के पश्चात अब ऑनलाइन परीक्षा का भी समय आ गया। मैं खुश थी कि बेटे ने तो खूब मन लगाकर कक्षाएँ की हैं साथ ही घर पर भी पढ़ाई ही करता रहा।
पर यह क्या गणित के प्रश्नपत्र में उसे चालीस में से मात्र सात अंक ही मिले हैं, अंग्रेज़ी में बारह, विज्ञान में ग्यारह ,यह क्या हुआ…मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई। हाय! राम यह क्या हुआ यहाँ तक कि रोहन को भी इतने खराब परिणाम की अपेक्षा नहीं थी, उसके तो पसीने ही छूट गए। पिताजी को पता चलेगा तो क्या होगा यह सोच -सोचकर वह रोने लगा। रोहन सोच में पड़ गया पर सत्य तो सिर्फ़ उसे ही पता था।

अगले दिन हमारे घर में काम पर आने वाली बाई मुनिया समय से पहले ही काम पर आ गई, उसके चेहरे की चमक साफ़ बयान कर रही थी कि खुशी की कोई बहुत बड़ी बात है। मैंने उससे पूछना ही चाहा था कि वह बोल उठी-” मेडम आज मेरे दोनों बेटों का ऑनलाइन परीक्षा का परिणाम आया है और दोनों को ही सभी विषयों में पचास में से पैतालीस पैतालीस अंक प्राप्त हुए हैं।”
मैंने उससे पूछा कि तुम्हारे बच्चे भला किस प्रकार पढ़ाई करते हैं? तुम्हारे घर तो लेपटॉप, हेडफोन भी नहीं है उस पर से तुम्हारा घर भी इतना छोटा कि भीतर जाते ही खत्म हो जाता है। उस पर से घर में तुम्हारे और दो बच्चे हैं सास ससुर और खाली-पीली बैठा रहने वाला एक देवर भी है। तो यह भला कैसे संभव हुआ कि इतने तंग और शोरगुल वाले माहौल में पढ़ाई करके बेटों ने इतने अच्छे अंक ले लिए। और तो और तुम्हारे बेटे यदा -कदा अपने पिता के साथ उनकी मदद करने सब्जी की दुकान पर भी जाकर बैठा करते हैं।

मुनिया बोली- ” हाँ मेडम, हमारे घर में एक ही मोबाइल है वो भी बच्चों के पिताजी का ,जिसे वो पूरे दिन के लिए घर पर छोड़ भी नहीं सकते और तो और दोनों बेटों की कक्षा का समय भी एक ही रहता है। इसलिए सोमवार को मेरा बड़ा बेटा तो मंगलवार को छोटा बेटा ऑनलाइन पढ़ाई किया करता है। सुबह जब कक्षा समाप्त होती तो वे पिताजी की साग -भाजी की दुकान पर जाकर बाकी की पढ़ाई -लिखाई करते हुए काम में हाथ भी बंटा दिया करते हैं।”
मुनिया ये सब बातें रसोईघर में मुझे धीरे- धीरे बता रही थी ताकि शोर न हो और रोहन ठीक से पढ़ सके किन्तु पास ही खड़े रोहन ने सब कुछ सुन लिया। पश्चाताप के आँसुओं से भीगे उसके कपोलों ने कुछ कहे बिना ही सबकुछ बयां कर दिया। शर्म के मारे रोहन अपनी माँ से आँखें नहीं मिला पा रहा था।

कुछ प्रश्न ज़हन में मेरे भी उठ खड़े हुए…
माता की ममता और पिता के वात्सल्य की क्या परिभाषा है…

क्या कमियों से भी आदर्श स्थापित किया जा सकता है।

मुझे मेरे प्रश्नों के उत्तर मिल गए थे और समय रहते वे दो बालक रोहन को एक बहुत बड़ा पाठ पढ़ा गए।

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