दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण एअर इंडिया के पायलट के भत्ते घटाने के केंद्र के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. अदालत ने कहा कि जब देश में कई अन्य लोगों ने अपनी आजीविका खो दी, पायलट को लाखों रुपये वेतन मिल रहा था, ऐसे में कटौती से प्रभावित होने का दावा नहीं किया जा सकता. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने 2020 में पूर्ण लॉकडाउन का उल्लेख किया, जब सभी विमानन परिचालन निलंबित कर दिए गए थे. पीठ ने कहा कि विभिन्न एयरलाइन के पायलट ने अपनी नौकरियां खो दीं, लेकिन एअर इंडिया ने सुनिश्चित किया कि छंटनी न हो.
एकल पीठ के आदेश के खिलाफ ‘एक्जीक्यूटिव पायलट एसोसिएशन’ की अपील को खारिज करते हुए पीठ ने कटौती पर सवाल उठाते हुए टिप्पणी की, ‘भत्ते के बिना भी एक पायलट कई अन्य लोगों की तुलना में 6 से 7 लाख रुपये का वेतन पैकेज लेता है. महामारी के दौरान देश में कई लोगों ने अपनी आजीविका खो दी. इस तथ्य को देखते हुए वे (पायलट) शिकायत नहीं कर सकते कि वे वेतन और भत्तों में कटौती के शिकार हुए हैं.’ अपीलकर्ता ने 2020 में नागर विमानन मंत्रालय द्वारा उस समय सरकार के स्वामित्व वाली एअर इंडिया के कर्मचारियों के वेतन में कटौती के निर्देश जारी करने के कई आदेशों को एकल न्यायाधीश के समक्ष चुनौती दी थी.
‘भत्तों में आनुपातिक कटौती’ का निर्णय मनमाना नहीं
अदालत ने कहा कि अधिकारियों द्वारा ‘भत्तों में आनुपातिक कटौती’ का निर्णय मनमाना नहीं था और इसे ‘अभूतपूर्व स्थिति’ के दौरान अपने कर्मचारियों की आजीविका सुरक्षित करने के लिए लिया गया था. अदालत ने तीन जुलाई को पारित आदेश में कहा, ‘‘लॉकडाउन उपायों ने कर्मचारियों और नियोक्ताओं पर समान रूप से प्रभाव डाला. सभी उद्योग या प्रतिष्ठान अलग-अलग प्रकृति और वित्तीय क्षमता वाले होते हैं और कुछ वेतन, भत्ते के भुगतान का वित्तीय बोझ वहन कर सकते हैं, लेकिन अन्य समान रूप से ऐसा करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं. दो प्रतिस्पर्धी दावों के बीच संतुलन बनाना होगा, क्योंकि कंपनी का अस्तित्व सर्वोपरि है.’