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स्मित मुस्कान, लेखिका : भावना तायवाड़े 16/10/2020

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कोरोना काल में मंदी के चलते स्वानंदी को उसके कार्यस्थल से अनिश्चित समयावधि के लिए कार्य मुक्त कर दिया गया था।

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आज शाम ही उसके मोबाइल पर घंटी बजी उठाने पर उसकी बात संस्था के किसी प्रमुख कर्मचारी से हुई जिसने लगभग 6 महीनों से वीरान पड़े उसके मन -कानन को पुनः हरा -भरा कर दिया। जी हाँ, यह फोन था अपने कार्यस्थल में उसकी पुनः वापसी का।

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अपने चारों ओर आनंद ही आनंद बिखेरने वाली स्वानंदी के लिए यह खबर किसी खजाने की चाबी मिलने की भांति थी।

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स्वानन्दी खुशी से झूम उठी। जाने कितने ही आर्थिक उतार-चढ़ाव उसने अपने जीवन में देख रखे थे किंतु कभी भी किसी उतार पर वह लेश मात्र नहीं घबराई थी। भीतर से असहाय होने वाली स्वानंदी बाहर से सभी को हर परिस्थिति में आनंदित ही दिखती थी गजब का गुण था उसके व्यक्तित्व का यह और आत्मविश्वास तो उसमें कूट-कूट कर भरा हुआ था।

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हाँ, एक स्थान था जहाँ पर स्वयं को वह अकेला ही पाती थी उसका अपना भावुक हृदय।

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अपने पति के काँधे पर की जिम्मेदारियों का बोझ उसने सहर्ष ही साझा किया था। परिवार के लिए बराबरी से आर्थिक सहयोग देकर वह एक आधुनिक महिला का भी कर्तव्य भली-भांति निभा रही थी।

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फोन के जरिए ही स्वानंदी पर कार्य का बोझ लाद दिया गया वह भी देर शाम। साथ में यह भी कहा गया कि अगले दिन ही सुबह सुबह काम शुरू हो जाना चाहिए।

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मरती क्या ना करती… एक क्षण भी गवाएं बिना जुट गई वह कार्य पर। तैयारी… तैयारी… और तैयारी। कार्यस्थल तो पुराना ही था किंतु कार्य करने का तरीका अब पूर्णतः बदल चुका था। यह बदलाव उसके लिए नवीन था बहुत से तकनीकी बातें जो शामिल हो गईं थी अब कार्य के निष्कंटक संचालन में।

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काम करते-करते कब रात के 12:00 बज गए उसे पता ही न चला सहसा उसे ध्यान आया कि काम के फेरे में वह तो रात का भोजन पकाना ही भूल गई। इससे पूर्व ऐसा नहीं हुआ था रात्रि 8:00 8:30 बजे तक वह सब को भोजन करा ही देती थी।

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समय रात्रि के 12:00। घबराई हुई सी स्वानंदी ने बीच में ही अपने कार्य को विराम दिया और जैसे ही वह कमरे से बाहर निकली तो पति को सोफे पर आराम से बैठकर मैच का लुत्फ उठाते पाया। देखा कि बेटा भूख से व्याकुल है किंतु भोजन किससे माँगे…?  इस असमंजस में पिता के पास ही बैठा उनका साथ दे रहा था। स्वानंदी ने झटपट अपने आप को संभाला और रसोई घर में जाकर गरमा- गरम भोजन तैयार किया। फिर सभी को खाना परोस कर, खिलाकर लगभग रात्रि 1:00 बजे पुनः अपने ऑफिस के अधूरे कार्य को पूरा करने बैठ गई  रात्रि 2:30 बजे तक वह कार्य करती रही।

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जब वह आराम करने शयनकक्ष में गई तो पति को निश्चिंत सोता हुआ देखकर उनके चेहरे को निहारने लगी। बरबस ही उसकी आँखें छलक आई।

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यह वही स्वानंदी है जिसने समाज में आर्थिक रूप से कमज़ोर समझे जाने वाले अपने परिवार को एक नई मजबूत व ठोस पहचान दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपने पति को कभी किसी के समक्ष कमज़ोर नहीं पड़ने दिया।उनका उठा हुआ सिर ही उसकी पहचान रही।

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रात के 2:30 बजे अपनी आँखों की कोरों से छलकते हुए आंसू को पोंछते हुए गहरी श्वास भरकर चेहरे पर वही लुभावनी स्मित मुस्कान धारण किए स्वानंदी एक अनुत्तरित प्रश्न लिए सो गई।

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स्वानन्दी के भावुक मन की इस पीड़ा ने मुझे भी विचार करने पर मजबूर कर दिया….

कि नारी सिर्फ और सिर्फ त्याग,कर्तव्य और प्रेम की प्रतिमूर्ति है या इससे भी परे उसका अपना कोई अस्तित्व है….

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