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सब्र धर ले

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सब्र ज़रा सा मेरे मन,

अपने दिल में और धर ले।

इतने दिन तू ठहरा घर में,

बस थोड़ा और ठहर ले।।

ये आँधी नहीं एक दिन की,

न अभी तूफ़ान थमा है।

माना मंज़िल दूर खड़ी है,

तू साहिल पर पहुँच रहा है।।

—-

अब का शत्रु अदृश्य है साथियों,

इसका कोई ईमान नहीं।

मज़हब न इसका कोई जाने,

हाँ, यह इंसान नहीं।।

—-

मझधार में डूबती नैया का,

एक ही पतवार है।

घर पर रहना, बाहर न जाना,

अमोघ यह हथियार है।।

—-

इस हैवान के घेरे में,

अब पाँव बढ़ाना उचित नहीं।

लक्ष्मण रेखा जो पार करोगे,

धर ही लेगा वह तुम्हें कहीं।।

—-

ज्यों बाली पर राम ने,

छुपकर बाण चलाया था।

दुश्मन आधा बल हर लेता,

इसलिए उसे भरमाया था।

—-

हम राम के वंशज हमें,

संयम से काम लेना है।

घर में अपने रहकर ही,

कोरोना को ख़त्म करना है।।

—-

कोरोना को चेतावनी…..

➖➖

सुरसा-सा तू मुँह खोलकर,

देखें कितना फ़ैल सकेगा।

कइयों को तू लील चुका है।

पर…..

भारत को न निगल सकेगा।

भारत को न निगल सकेगा।।

मझधार में डूबती नैया का,

एक ही पतवार है।

घर पर रहना बाहर न जाना,

अमोघ यह हथियार है।।

कविता : भावना प्रीतीश तायवाड़े….

14/4/2020

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