Home साहित्य कहानी: तुम्हारे लिये…. लेखिका : मंगला मोहिनी जोशी.. औरंगाबाद, महाराष्ट्र

कहानी: तुम्हारे लिये…. लेखिका : मंगला मोहिनी जोशी.. औरंगाबाद, महाराष्ट्र

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आज वही दोपहर याद आई जो “तुम्हारे लिये लेकर आई थी” और तुम ना जाने कहां रह गईं, आज भी, आज भी वह मेरे साथ ही है, जीवन की तलाश करते-करते कितने वर्ष बीत गये पर वह प्यार, वह साथ, वह कशिश, आज भी अन्तरमन तक महसूस कर रही हूँ| “तुम्हारे लिये” वह सबकुछ था, पर तुम ना जाने कहाँ हो, मन प्यार से अभी भी भीगा-भीगा सा है, तुम्हारे स्पर्श से वह सामान आज भी मेरे पास रखा है और ज़िंदगी में “तुम्हारे लिये तलाश कर रही हूँ, अपने आपको…

    हुआ यूँ कि हम दोनों पाँच वर्ष पहले एक मेले में कोसे की साड़ियों के शॉप (स्टॉल) पर मिले, उसके पश्चात 5 स्टार होटेल में मिले, मतलब सिर्फ ऐक दूसरे को देखते और कहीं ना कहीं टकरा ही जाते, यह सिलसिला चलता रहा और कशिश दोनों ही तरफ से रही..कहते हैं न दिल और दिमाग का बंधन नम्बरों की तरह फ्ल्क्च्युट होता है, और मेरा दिल तो बहुत ही अधिक भाग रहा था…

      एक दिन अचानक हम फिर मिले रात में आईस्क्रीम के मेगा स्टॉल पर ऊफ! उस दिन उनसे रहा नहीं गया और लिख भेजा मुझे..

    “जो है दिल में बताकर तो देखो..

  चाहत को होंठों पर लाकर तो देखो…

  सब कुछ मिल जायेगा, उसी पल लेकिन…

  एक बार जता कर तो देखो तुम्हारे लिये ही तो हूँ..

                                           तुम्हारी स्निग्धा”

ओओओओओ…. गॉड एक कागज़ की चिट्ठी पर मोबाईल नम्बर के साथ किसी के माध्यम से मेरे पास आई और मैं आश्चर्य से और खुशी से झूम उठी, जब देखा उस ओर जहाँ से यह प्रेमपाती आई थी, देखती ही रह गई, उस स्निग्धा को जो मेरी ओर बहुत आशा और प्यार से देख रही थी, सुनहरे ऑरेंज साड़ी में बहुत ही सुन्दर दिख रही थी, और प्रेम पाती और बारंबार टकराने वाली स्निग्धता यह नाम है उसका, मै तो पागलों की तरफ उसके पास दौड़ गई, और एक ही साँस में बोली बोली मै;तो येययय आप हैं इतनी सुन्दर स्निग्धता जी आपने तो मुझे पागल बना दिया, कितने वर्षों बाद मेरी तलाश पूरी हुई, सब एक ही साँस में बोल गयी और स्निग्धता अ-पलक निहारती रही, मानों मैं उनकी आँखों में समा जाऊँगी..

    उन्होंने कहा! मैं तो आपको बहुत दिनों से फॉलो कर रही थी, और वह इसिलिए कि, आप एकदम इनोसेंस, सैक्सी पर्सनालिटी और सबसे सुन्दर जादूभरी आँखें, मदमस्त मुस्कान, बस रहा नही गया तो सोचा आज एक प्रेमपाती ही दे दूँ| पहले से ही तैयार करके रखी थी, प्रेमपाती तुम्हारे लिये (आपके लिये नही) क्यों कि तुम मेरी सखी, डियर, डार्लिंग मेरी सहेली सब कुछ हो, और मेरे पास याने स्निग्धता के पास बहुत कुछ और सब-कुछ होते हुवे भी कुछ नहीं है, तुम्हारे जैसे बिंदास, झक्कास, आध्यात्मिक व्यक्तित्व नहीं है, जैसी ही बातें हम करते रहे——-? और? मैने उसे कहा इस बिंदास के पीछे बिखरे पन्ने हैं न, उन पन्नों पर काले अक्षरों की आँसुओ से भरी कहानी भी है, डार्लिंग, पर अब मैं “अपने लिये जीती हूँ ” और समाज है, घर भी है पर भावनाएं रिते-रिते घड़ों की तरह हों गईं हैं..

    एक दिन फोन करके बात करने की और कोशिश की, उस प्रेमपाती के बाद मै कुछ अधिक ही स्निग्ध हो गई थी, बस फिर क्या था,जो मोबाईल नम्बर दिया था, मोबाइल की, पर यह क्या! उधर से आवाज़ आई, रात को दस बजे क्यों फोन किया मैम जी, मैम जी दस के बाद रात के दस बजे के बाद बेसुद्ध होती जी, नशे में चूर जी बेसुद्ध.. इतना व्यंग्यात्मक और भद्दे तरीके से जवाब आया, एकदम धक्का लगा, बहुत कठिनाई से पूछा कि आपके मैम जी के घर का पता बताओ| शायद नौकरानी ही थी, बोली घर नयी जी, मैम जी की कोठी है, जी कोठी जी लो पता लिख लो..

   बहुत अजीब लगा जो देखा था वह! और आज क्या समझ ही नहीं आया “तुम्हारे लिये” वह कविता क्या स्निग्धता ने ही लिखी थी—- मुझे दुःख और गुस्सा दोनों बहुत आया और मोबाइल पर ही मैने भी प्रेमपाती लिखकर पोस्ट कर दी… मैसेज पहले:स्निग्धता मैने तुम्हें रात दस बजे फोन की थी और तुम्हारे तरफ से किसी ने बहुत ही भयंकर जवाब दिया मैं दंग रह गई, इस सुन्दर मुखड़े के पिछे इतना गहरा ज़ख्म होगा, जो नशे में चूर होकर सोता होगा, मुझे बहुत दुःख हुआ..अब मेरी प्रेमपाती पढ़ो और आकर मिलकर बात करो..

             “दिल के जजबात जताने लगती है,

जब तू कभी शरमाने लगती है,

      क्या तुम्हें मालूम है कि,

      ख्वाब में तुम्हारा फूल सा चेहरा देखा,

      तो सबह आँखो तक से खुशबू आने लगती है.. तुम्हारे लिये मैं तुम्हारी

                          सखी

बस पोस्ट कर दी—— उसके बाद मैने फोन भी नहीं किया और बात भी नहीं की, परन्तु मैं बहुत ही मिस कर रही थी, मैं सोच भी रही थी कि स्निग्धा ने फोन भी नहीं किया, मै कॉफी पीते-पीते सोच रही थी, बस अब बहुत हुआ मैं ही फोन करती हूँ और कप रखकर अपने फेवरेट झूले पर बैठकर फोन फोन लगाती हूँ, तो ये क्या गेट पर एक आलिशान लग्जरी कार खड़ी है और बाहर मैम जी याने स्निग्धता खड़ी है आँखों में आँसू लिये और मेरी प्रेमपाती कविता की फोटोप्रिंट लिये -: ओओओओओ गॉड यह क्या मैने कहा और बोला, यह क्या आई तो बताना था, लेने आती मेरे घर का पता देती.. और अचानक.. अब आऔ भी अन्दर मेरे घर के अन्दर या गेट से ही वापस जाओगी..

    और ये क्या इतने सारे आँसुओं के साथ इतना सारा सामान ये सब—– तो उसने कहा कि यह सब तुम्हारे लिये और यह मेरे लिये-:

     स्निग्धता बोली तुम्हारी प्रेमपाती और तुम्हें फॉलो करने में जो दिन गुजा़रे सिर्फ तुम्हें पाने के लिये, अपनी सखी, देवी, बनाने के लिये भटकती रही, और तुम्हारे घर का पता भी आसानी से मिल गया बहुत बड़ी समाजसेविका मेरी सखी तुम्हारा नाम ही काफी था—-

    स्निग्धता बोल रही थी और मैं सुनकर दंग ..इतना कुछ मेरे बारे में पता की पर क्यों—मैने पूछा यह सब क्यों.. तो बोली लोगों ने बताया कि सखी मैडम जितनी सुन्दर, सकारात्मक, आध्यात्मिक है, उतनी ही अच्छी दोस्त भी है| बहुत स्वाभिमानी भी, एक बार आप उनसे मिलकर अपनी शेयर कर सारी परेशानियाँ दूर कर सकती हैं.. और परेशानियाँ दूर हो जायेंगी… ओऔओओओ…. तो ये बात है मेरे बारे में पता की पर ऐसा कुछ नहीं है, मुझमें तुम स्वयं मुझे बहुत अच्छी लगीं और मन खिंचता गया और अच्छी सहेली मिल गई, पर यह नहीं पता था मेरी स्निग्धता मंदिर ना जाकर मदिरालय से प्यार करती है, तो मुझसे कैसी दोस्ती होगी, स्निग्धता बोली स्कॉच से भी अधिक अब सखी और उसके ब्लैक कॉफी से प्यार करेगी आज से सब बंद—– बस आखिरी लार्ज पैग आज तुम्हारे लिये तुम्हारे नाम से पीकर हमेशा के लिये बंद और उस रात उसने बहुत शराब पीकर सारे बंधनों से मुक्त होकर आज वह और मै साथ ही हैं-**

    स्निग्धता कि सखी बनकर-: मैने उससे पूछा और जो दूसरा सामान है,वह क्या है या उसमें भी दारू, सिगरेट है, तो वह बोली तुम बस 15से 20 मिनट के बाहर जाओ जब बुलाऊँगी, तब अन्दर आना तब तक नहीं….

    मैं बहुत ही व्याकुल मन से झूले पर बैठ कर प्रतीक्षा करने लगी…लगभग तीस मिनट पश्चात उसने आवाज़ लगाई, सखी-सखी, मेरी देवी अन्दर आ जाओ-:

     जब मैं मेरे हॉल में गई तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था, बहुत बड़े अक्षरों में लिखा था, “तुम्हारे लिये, तुम्हारी सखी, स्निग्धा की तरफ से तुम्हारे लिये” यह सब पूरी सूची तैयार करके लाई थी..1- मेरी कोठी और उसके दस्तावेज तुम्हारे लिये..2- मैं तुम्हारे लिये..3- मेरी पसंद के नये-नये कपड़े, रूद्राक्ष,  साड़ियां, कॉफी यह सब तुम्हारे लिये और यह कार भी और मैं भी तुम्हारे लिए… मुझे यह सब देखकर बहुत डर लगने लगा और मैं बोली मैं यह सब नहीं ले सकती ,मैं साधारण परिवार से आती हुँ,हाँ मेरे सपने बड़े हैं कुछ करना है पर यह सब क्यों…तो स्निग्धता बोली ”जब मैने तुम्हारे बारे में सुना कि तुम जो बोलती हो वो सब सुनते हैं, तुम्हें सम्मान देते हैं, कई बिगड़लौं कों, नशेड़ियों को सुधारा है.. तो मुझे लगा पहले पता करूँ कि तुम सच में इतनी अच्छी हो, बस फिर क्या था मुझे समाज में सम्मान और एक अच्छी मार्गदर्शिका और सखी चाहिये थी, तो तुम्हारे शरण में आ गई,  तुम्हारा दामन थामने आज मेरी सारी बुरी आदतें तुम्हारे कारण छूट गईं हैं और लोग बहुत ही सम्मान देते हैं,कहते हैं, सखी मैडम की सहेली है, ऐसा बुलाते हैं—-

   इसिलिये तुम्हारे शरण आई, सब कुछ तुम्हारे नाम कर दी, मेरी साँसें भी… अब तुम शुभ्र-सुन्दर आँचल मे मुझे छुपा लो, जो मेरा आँचल मैला था, उजला कर दो… यह सब सुन्दर आज भी मेरी स्निग्धा मेरे साथ है और हम बहुत खुश हैं और उसने मेरे आश्रम का नाम भी यही रखा” तुम्हारे लिये सखी-स्निग्धा आश्रम”

आज दुनिया मे हमारा आश्रम प्रसिद्ध है..स्निग्धा का उपहार लहलहा रहा है ..

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